Chhatisgarh Yatra: संघर्ष से समृद्धि तक 25 साल का अनोखा सफर

Chhatisgarh Yatra: साल 2000 में भारत के नक्शे पर एक नया नाम उभरा – छत्तीसगढ़। भारत का 26वां राज्य बनने के बाद, इस राज्य ने पिछले 25 वर्षों में अद्भुत विकास और परिवर्तन का अनुभव किया है। आज पूरे राज्य में इसकी रजत जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह राज्य कैसे अपने संघर्षों, संसाधनों की कमी और चुनौतियों से निकलकर समृद्धि और पहचान के पथ पर आया? आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ की अनसुनी और प्रेरणादायक कहानी।

छत्तीसगढ़ का नाम और पहचान

छत्तीसगढ़ का नाम सुनते ही दिमाग में किले, जंगल और सांस्कृतिक विरासत की तस्वीर उभरती है। इतिहास में दर्ज है कि यहाँ 36 गढ़ (किले) थे, इस वजह से इसे ‘छत्तीसगढ़’ कहा गया। 18वीं सदी में मराठों के समय यह नाम प्रचलित हुआ। इससे पहले इसे दक्षिण कोशल कहा जाता था।

रामायण और पुराणों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान राम ने अपने 14 वर्षों के वनवास का एक बड़ा हिस्सा यहीं बिताया। यही नहीं, छत्तीसगढ़ सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी महत्वपूर्ण है।

प्राचीन इतिहास

छत्तीसगढ़ का इतिहास अत्यंत समृद्ध रहा है। मौर्य, सातवाहन, गुप्त, वाकाटक, सोमवंशी, नलवंशी और कलचुरी जैसे कई शक्तिशाली वंशों ने यहाँ शासन किया। सिरपुर शिक्षा, कला और धर्म का प्रमुख केंद्र था और यहाँ से बौद्ध धर्म का प्रचार एशिया के कई हिस्सों में हुआ।

इस भूमि पर शैव, वैष्णव और बौद्ध संस्कृतियों का संगम हुआ, जिससे इसे ‘संस्कृतियों की प्रयोगशाला’ भी कहा जाता है।

मध्यकाल और रियासतें

मध्यकाल में छत्तीसगढ़ कई छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया था। रतनपुर में कलचुरी राजाओं का शासन था और बस्तर, रायगढ़, सरगुजा, कांकेर और कवर्धा जैसे क्षेत्रों में स्थानीय राजवंशों की अपनी परंपराएँ थीं। इन सभी ने मिलकर छत्तीसगढ़ को अलग पहचान दी।

मराठा और ब्रिटिश काल

18वीं सदी में मराठों ने रतनपुर पर कब्ज़ा किया और इसे नागपुर राज्य का हिस्सा बनाया। इस दौरान ‘छत्तीसगढ़’ नाम का आधिकारिक प्रयोग शुरू हुआ।

1854 में ब्रिटिश राज में शामिल होने के बाद रायपुर को प्रशासनिक केंद्र बनाया गया। हालांकि ब्रिटिश शासन ने बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया, लेकिन जनता पर भारी कर और शोषण का बोझ डाला। इस समय आदिवासी समाज और किसानों ने अस्मिता की रक्षा के लिए विद्रोह किया।

स्वतंत्रता के बाद आंदोलन और राज्य गठन

1947 में भारत आज़ाद हुआ, लेकिन छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा बना। यहाँ के लोग कई वर्षों तक उपेक्षित महसूस करते रहे। यही कारण था कि पृथक राज्य की मांग उठी।

  • 1918 में पं. सुंदरलाल शर्मा ने पहली बार इसका विचार रखा।
  • 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में इस पर चर्चा हुई।
  • 1946 में छत्तीसगढ़ शोषण विरोधी मंच बना।
  • डॉ. खूबचंद बघेल और शंकर गुहा नियोगी जैसे नेताओं ने आंदोलन को मजबूती दी।
  • 1994 में विधानसभा में पृथक राज्य का प्रस्ताव पेश किया गया।
  • 1998 में औपचारिक मंजूरी मिली और 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ भारत का 26वां राज्य बना।

छत्तीसगढ़ आज

राज्य गठन के समय 16 जिले थे, जो अब बढ़कर 33 जिले हो गए हैं। छत्तीसगढ़ आज भारत का पावर हब और स्टील कैपिटल बन चुका है। खनिज संपदा, कृषि, बिजली उत्पादन और उद्योग में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

संस्कृति की बात करें तो बस्तर दशहरा, राजिम कुंभ, गोंचा महोत्सव, तीजा और पोला जैसे त्योहार यहाँ की असली पहचान हैं। लोकगीत, नृत्य और आदिवासी परंपराएँ पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ती हैं।

छत्तीसगढ़ की 25वीं वर्षगांठ सिर्फ समय का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, सपनों और उपलब्धियों की कहानी है। यह राज्य अब महज भूगोल नहीं, बल्कि महतारी, हमारी मां है, जो अपनी संतानों को संस्कृति, समृद्धि और पहचान देती है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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