पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में एक रेलवे स्टेशन है, ‘बेला नगर रेलवे स्टेशन’। 1958 में इस स्टेशन का नाम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी ‘बेला मित्रा’ के नाम पर रखा गया। ये वही साहसी महिला हैं जिन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे।
साल 1920 में बंगाल के कोडालिया में एक संपन्न परिवार में बेला का जन्म हुआ। वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस की बेटी थीं। बेला बचपन से ही नेताजी को अपना आदर्श मानती थीं और उनकी ही तरह बनना चाहती थीं। नेताजी का सानिध्य मिलने की वजह से बेला के मन में बचपन में ही क्रांतिकारी बनने की अलख जाग चुकी थी।
1941 की बात है, नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों ने नज़रबंद कर दिया था। तब साहसी बेला ने ही उन्हंन वहां से भागने में मदद की थी। बेला की सूझ-बूझ से नेताजी काफी प्रभावित थे। उनके अंदर देशप्रेम और कर्तव्यनिष्ठा को देखकर ही नेताजी बेला और उनकी बहन ईला को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे।
धीरे-धीरे बेला बड़ी हुईं और स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने लगीं। बाद में बेला नेताजी के बनाए INA (भारतीय राष्ट्रीय सेना) से जुड़ी और ‘झांसी रानी ब्रिगेड’ की कमान संभाली। बेला का विवाह हरिदास मिश्रा से हुआ। वे भी एक क्रांतिकारी थे और गुप्त सेवा सदस्य के रूप में आईएनए (INA) की कमान संभाल रहे थे।
बाद में बेला को आईएनए (INA) के विशेष अभियान की देखभाल करने के लिए कलकत्ता भेज दिया गया। और उनकी समझदारी के चलते उन्हें रेडार कम्यूनिकेशन से जोड़ा गया। बेला के पति हरिदास इसी मिशन को लीड कर रहे थे। पर ब्रिटिश सरकार द्वारा पकड़े जाने के बाद बेला ने रेडार कम्यूनिकेशन की कमान संभाली और मिशन को सफल बनाया। वे मिशन में शामिल सभी सदस्यों के साथ संचार व्यवस्था की देखरेख करती थीं। उनके आवास और तैनाती बेला के ही जिम्मे थी। उन्होंने कई क्रांतिकारियों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया।
बेला की मदद से ही साल 1944 में एक गुप्त प्रसारण सेवा की स्थापना की गई। बेला ने रेडियो ऑपरेटर्स और जासूसों की एक पूरी टीम को लीड किया। जो भारत और सिंगापुर के बीच कम्यूनिकेशन करवाने के लिए ट्रांसमीटर और रीसीवर स्थापित करते थे। लगभग एक सालों तक दोनों देशों के बीच इसी सेवा से संचार का आदान प्रदान होता रहा।
दूसरे विश्व युद्ध के समय उनके पति हरिदास और तीन अन्य क्रांतिकारियों पबित्रा रॉय, ज्योतिष चंद्र बोस और अमर सिंह पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। उन्हें उम्र कैद की सजा सुना दी गई। बेला ने इसे रोकने के लिए पुणे जाकर महात्मा गांधी से मदद मांगी। गांधीजी के हस्तक्षेप के उनकी सजा को बदलकर उम्रकैद में बदला गया। भारत की आजादी के बाद बेला मित्रा राजनीति से दूर रहीं। उन्होंने तय किया, कि- विभाजन के दौरान हिंसा से पीड़ित लोगों की मदद करने करेंगी। उन्होंने हमेशा निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा की। 1947 में ‘झांसी रानी रिलीफ टीम’ नामक एक सामाजिक संगठन बनाया। उन्होंने अंतिम सांस तक शरणार्थियों के लिए काम किया। बेघरों के लिए किए गए उनके कार्यों के लिए ही अभय नगर में हावड़ा बर्धमान लाइन के रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘बेला नगर स्टेशन’ किया गया। उनके अभूतपूर्व कार्यों के लिए उन्हें ‘ बंगाल की झांसी की रानी’ भी कहा जाता है।