Baliram Kashyap biography: ये सिर्फ एक नेता की कहानी नहीं है, ये उस मिट्टी की कहानी है जहां से उन्होंने राजनीति की शुरुआत की, सेवा को मिशन बनाया और बस्तर की तस्वीर बदल दी। ये कहानी है बलिराम कश्यप की, बस्तर के बेटे की, जो आज भी बस्तर में जीवंत हैं।
बस्तर का बेटा
1936 में जन्मे बलिराम कश्यप ने बस्तर की जमीन पर सिर्फ कदम नहीं रखे, बल्कि उसे समझा, महसूस किया और उसके दुख-दर्द को अपनी आवाज़ बना दिया। उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़ा और जनसंघ की विचारधारा के साथ जुड़कर राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया।
सेवा की राह पर पहला कदम
1972 में विधायक बने और उसी वक्त से उन्होंने बस्तर की तकदीर बदलने की लड़ाई शुरू कर दी। उस दौर का बस्तर, जहां शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं भी सपना थीं। बलिराम कश्यप के लिए एक मिशन बन गया।
जनजातीय हितों की आवाज
1977 में राज्य मंत्री और फिर आदिवासी कल्याण मंत्री के रूप में उन्होंने बस्तर के आदिवासियों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। उन्होंने केवल योजनाएं नहीं बनाईं, उन्हें ज़मीन पर उतारने का काम भी खुद किया।
संसद से संकल्प तक
1998 से लेकर 2011 तक चार बार लोकसभा सांसद रहे। दिल्ली में उन्होंने बस्तर के लिए बोलना नहीं छोड़ा। सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य या सुरक्षा—हर जरूरी मुद्दे पर उन्होंने मजबूत आवाज़ उठाई। उनका एक बयान आज भी गूंजता है,
“हमारा बस्तर पिछड़ा नहीं है, बस उसे अब तक अवसर नहीं मिला। हमें चाहिए समर्पण, हमें चाहिए योजनाओं की ज़मीन तक पहुंच।”
प्रधानमंत्री ने माना गुरू
1998 में जब नरेंद्र मोदी संगठन के काम से बस्तर पहुंचे, तो बलिराम कश्यप उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहे। प्रधानमंत्री मोदी खुद उन्हें “गुरुजी” कहकर संबोधित करते हैं और मानते हैं कि उन्होंने बस्तर में बलिराम कश्यप से ही राजनीति नहीं, सेवा सीखी।
जनता का नेता
बलिराम कश्यप की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी सादगी। दरवाज़े हर किसी के लिए खुले रहते। गांव हो या शहर, आम हो या खास, हर व्यक्ति को उनके पास जाने में झिझक नहीं होती थी।
विरासत जो ज़िंदा है
2011 में उनका निधन हो गया लेकिन बस्तर में उनका नाम आज भी जिंदा है। उनके नाम पर बने मेडिकल कॉलेज में आज बस्तर के बच्चे डॉक्टर बन रहे हैं। उनके बेटे केदार कश्यप ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया है और जनता से जुड़ा नेतृत्व आज भी कायम है।
बलिराम कश्यप की जिंदगी यह बताती है कि राजनीति सत्ता का खेल नहीं, सेवा का अवसर है। उन्होंने बस्तर को केवल पहचान नहीं दी, बस्तर की आत्मा को भी जगाया।