साल 2025 भारतीय खेलों के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है, खासकर हमारी महिला खिलाड़ियों के लिए। एक तरफ जहाँ भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने चैंपियनशिप जीती, तो वहीं ब्लाइंड टी20 वर्ल्ड कप का खिताब भी भारतीय महिलाओं के नाम रहा। ऐसे में महिला कबड्डी वर्ल्ड कप की जीत को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। जी हां कबड्डी में भारतीय टीम ने विश्व चैंपियन का खिताब अपने नाम किया।
और इस शानदार जीत के पीछे एक ऐसी कहानी है, जो प्रेरणा और संघर्ष की पराकाष्ठा है। ये अनसुनी गाथा है छत्तीसगढ़ की उस बेटी की, जिसने गरीबी की झोपड़ी से निकलकर देश को वर्ल्ड स्टेज पर चैम्पियन बनाया।
भारतीय टीम ने जीता खिताब
ढाका, बांग्लादेश में हुए महिला कबड्डी वर्ल्ड कप का फाइनल रोमांच से भरा था। भारतीय टीम का मुकाबला तेज और रणनीतिक मानी जाने वाली ताइवान टीम से था। एक समय मैच कांटे की टक्कर पर था, लेकिन भारतीय टीम को खिताब दिलाने में सबसे निर्णायक भूमिका निभाई छत्तीसगढ़ के कोरबा के छोटे से गाँव केराकछार की 23 वर्षीय संजू देवी ने।
संजू ने रचा इतिहास
संजू ने फाइनल में अकेले 16 रेड पॉइंट लिए। पहले हाफ में जब ताइवान की टीम दबाव बना रही थी, तब संजू ने एक शानदार सुपर रेड में चार पॉइंट लेकर भारत की बढ़त को पक्का कर दिया। इसी निर्णायक बढ़त ने विरोधी टीम पर दबाव बनाया और भारत ने दूसरा ऑल-आउट करते हुए ताइवान को 35-28 से हराकर वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम कर लिया। संजू देवी के इस प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें टूर्नामेंट की ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ चुना गया। ये सम्मान सिर्फ संजू के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण था।
मेहनत और लगन की कहानी
संजू देवी की ये सफलता सिर्फ मेहनत और लगन का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उनकी गरीबी और आर्थिक संघर्ष पर मिली एक बड़ी जीत भी है। संजू के माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। यहाँ तक कि जब उन्हें इंडिया टीम में चुना गया और बांग्लादेश में वर्ल्ड कप के लिए जाना था, तब उनके पास अपने निजी खर्चों के लिए पैसे तक नहीं थे।
आपको हैरानी होगी कि देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए, संजू ने अपने कोच दिल कुमार राठौर से 5000 रुपये लिए। यही 5 हज़ार रुपये ही उनका बांग्लादेश तक का सफर तय करा सकी। कल्पना कीजिए, एक खिलाड़ी, जो देश के लिए विश्व कप खेलने जा रहा है, उसे अपने सफर के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है। यह दिखाता है कि ग्रामीण प्रतिभाओं को आर्थिक चुनौतियों का कितना बड़ा सामना करना पड़ता है। हालांकि, संजू ने इन चुनौतियों को अपने रास्ते का रोड़ा नहीं बनने दिया। उनकी लगन और प्रतिभा ने उन्हें एक स्टार रेडर बना दिया, जिसने न केवल भारत को चैम्पियन बनाया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि गांवों और रूरल स्पोर्ट्स सेंटरों से भी विश्व स्तरीय खिलाड़ी तैयार हो सकते हैं।
छत्तीसगढ़ की पहली खिलाड़ी
संजू देवी की यह सफलता छत्तीसगढ़ के कबड्डी इतिहास के लिए भी एक मील का पत्थर है। संजू छत्तीसगढ़ की पहली कबड्डी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। राज्य के कबड्डी इतिहास के 25 साल में यह पहली बार है कि किसी खिलाड़ी ने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। संजू बिलासपुर में स्थित राज्य सरकार की गर्ल्स रेजिडेंशियल कबड्डी अकादमी में प्रशिक्षण लेती हैं।
वर्ल्ड कप से पहले भी संजू का प्रदर्शन शानदार रहा था। मार्च 2025 में ईरान में हुई छठीं विमंस एशियन कबड्डी चैम्पियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था। इसी जीत ने भारत का वर्ल्ड कप में क्वालिफिकेशन भी सुनिश्चित किया था। वर्ल्ड कप के दौरान भी संजू लगातार टीम की सबसे प्रभावी रेडर रहीं। भारत ने लीग मैचों में 65-20, 43-18, 63-22 और 51-16 जैसे बड़े अंतर से जीत दर्ज की, और इन सभी मैचों में संजू ने लगातार डबल डिजिट अंक लेकर टीम को फाइनल तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका खेल तेज, रणनीतिक और हमेशा पॉइंट लाने वाला रहा।
Positive सार
संजू देवी की कहानी एक उम्मीद जगाती है कि ग्रामीण भारत में छिपी प्रतिभाओं को अगर सही मंच और आर्थिक सहयोग मिले, तो वे क्या कुछ नहीं कर सकते। संजू की झोपड़ी से वर्ल्ड स्टेज तक की यात्रा हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो अभावों में भी बड़े सपने देखता है।
संजू देवी की यह कहानी सिर्फ एक खेल की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, समर्पण और जीत की कहानी है। यह कहानी है कि कैसे एक बेटी ने अपनी मेहनत से न केवल अपना, बल्कि अपने माता-पिता और पूरे देश का नाम रोशन किया। संजू की कहानी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट में जरूर बताएं..विडियो को लाइक और शेयर करना न भूलें।
