इतिहास में जब भी 1857 की क्रांति (Revolution of 1857) में लड़ने वाली महिलाओं का नाम आता है तो अक्सर, रानी लक्ष्मीबाई, बेग़म हजरत महल जैसी वीरांगनाओं को याद किया जाता है। लेकिन अवध की अज़ीज़न बाई का नाम शायद ही किसी ने सुना होगा। पर अगर आप अवध जाएंगे तो स्थानीय लोकगीतों में अज़ीज़न बाई का नाम आज भी अमर हैं। दरअसल अज़ीज़न बाई एक नृत्यांगना थीं। जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई के लिए अपना सबकुछ त्याग कर दिया। उन्होंने 1857 की क्रांति में न सिर्फ भाग लिया बल्कि 400 महिला सैनिकों की टुकड़ी भी तैयार कर दी। अज़ीज़न बाई की कहानी यातनाओं से लेकर पराक्रम और सहादत तक का सफर तय करती है। उनकी कहानी एक ऐसी महिला की है, जिसने महलों की चकाचौंध से लेकर महिला उत्पीड़न तक सहा और मौका पड़ने पर समाज की बेड़ियों को तोड़कर आजादी के महासंग्राम में कूद गईं।
22 जनवरी 1824 में अज़ीज़न बाई का जन्म मध्य प्रदेश में मालवा राज्य के राजगढ़ में हुआ था। उनके पिता शमशेर सिंह एक बड़े ज़ागीरदार थे। अज़ीज़न बाई को बचपन में प्यार से सब अंजुला कहकर पुकारते थे। महलों में पली अंजुला काफी खूबसूरत और चुलबली तो थी हीं साथ ही अपने पिता की लाडली भी थीं। एक दिन अंजुला अपनी सहेलियों के साथ मेला घूमने गयी थीं। वहां पर अचानक एक अंग्रेज़ टुकड़ी ने उनपर हमला कर दिया और अंजुला को अगवा कर लिया। जब अंग्रेज अंजुला को लेकर नदी पर बने पुल को पार कर रहे थे, तब अंजुला जान बचाने के लिए नदी में कूद गईं और बहने लगीं। इसी समय एक पहलवान ने नदी में डूब रही अंजुला की जान बचा ली। लेकिन जब पहलवान ने अंजुला की खूबसूरती को देखा तो वह दंग रह गया। उसने अंजुला को कानपुर के एक चकलाघर में बेच दिया। अंजुला पर वहां कई जुल्म किए गए। उनका नामअंजुला से बदलकर अज़ीज़न बाई कर दिया गया। कुछ ही समय में अज़ीजन बाई अपनी खूबसूरती और नृत्य के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गयीं। बात 1857 की है जब भारत में पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत हो चुकी थी। भारतीय अब गुलामी के जंजीर को उखाड़कर फेंकना चाहते थे। और इसी समय तात्या टोपे और उनके सैनिक अंग्रेजों की रेकी कर रहे थे। अंग्रेजों का पीछा करते हुए तात्या टोपे मुलगंज पहुंचे। तब अज़ीज़न बाई मुलगंज में रहती थीं। होलीका दहन के दो दिन पहले तात्या टोपे ने मुलगंज में अंग्रेजों पर हमला करने का प्लान बनाया। जब तय दिन पर अंग्रेज फौज के अफसरों पर हमला किया गया तो अंग्रेजों ने अज़ीज़न बाई को आगे कर दिया और भाग खड़े हुए। यहीं पर तात्या की नजर अज़ीज़न बाई पर पड़ी और उन्होंने होलीका दहन पर अज़ीज़न बाई को बिठूर आने का न्योता दे दिया।
अज़ीज़न बाई ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया और होलिका दहन के दिन बिठूर पहुंच गईं। उन्होंने वहां नृत्य किया और तात्य टोपे से अपना मेहनताना मांगने लगीं। तात्या जब उन्हें पैसे देने लगे तो अज़ीज़न बाई ने पैसे लेने से इंकार कर दिया। तात्या ने उनसे वजह पूछी तो उन्होंने कहा- “अगर कुछ देना है तो अपनी सेना की वर्दी दे दीजिए।“ तात्या खुश हुए उन्होंने अज़ीज़न बाई को अपना मुखबिर बना लिया। होलिका दहन के बाद अज़ीज़न बाई ने मुलगंज में अंग्रेजों को आमंत्रित किया। जहां पहले से ही भारतीय क्रांतिकारी घात लगाए बैठे थे। क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों पर हमला बोला और इस तरह अज़ीज़न बाई की सहायता से तात्या टोपे ने एक बड़े मिशन को अंजाम दिया। मुलगंज से भागकर वह भारतीय सिपाहियों के लिए मुखबिरी का काम करने लगीं। उन्होंने क्रांतिकारियों की प्रेरणा से ‘मस्तानी टोली’ के नाम से 400 महिलाओं की एक टोली तैयार की। जो पुरुषों के भेष में रहती थीं। सतीचौरा घाट से बचकर बीबीघर में रखी गईं 125 अंग्रेज महिलाओं और बच्चों की रखवाली का काम भी अज़ीज़न बाई की टोली के ही जिम्मे था। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।
बिठूर के युद्ध में मिली हार के बाद नाना साहब और तात्या टोपे पलायन करने में सफल हुओ लेकिन अज़ीज़न बाई पकड़ी गयीं। कहते हैं कि अंग्रेज़ अफसर जनरल हैवलॉक अज़ीज़न बाई की खूबसूरती से आकर्षित थे। उन्होंने अज़ीज़न बाई
के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वे भारतीय क्रांतिकारियों की मुखबिरी करेंगी तो हैवलॉक सबकुछ भूल जाएंगे और अज़ीज़न बाई से विवाह कर लेंगे। लेकिन अज़ीज़न बाई एक भारतीय वीरांगना थीं। उन्होंने बड़ी ही वीरता से उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया। और हैवलॉक से कहा कि “माफी भारतीय नहीं अंग्रजों को मांगनी चाहिए कि उन्होंने हमारी मातृभूमि को छलनी किया है।“ अंग्रेज उनके जवाब से बौखला उठे। और आग बबूला हैवलॉक ने अज़ीज़न बाई को गोली मारने का आदेश दे दिया। अज़ीज़न बाई को बिठूर और मैनावती मार्ग पर ले जाया गया और उनके शरीर पर कई गोलियां दागी गई। क्षण भर में ही अज़ीज़न बाई मातृभूमि की गोद में सिमट गईं। उनकी सहादत और वीरता को सदैव याद किया जाता रहेगा।