भारत के दिल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ‘गड़-मंडला’ के अतीत को खुद में छिपाकर रखे हुए हैं। ये प्राचीन साम्राज्य भारत के स्वर्णिम इतिहास का भागीदार है जिसने अपने शौर्य के बल पर मुगलों और मराठों का सामना किया।
गोंड साम्राज्य के वीर शासकों के बारे में जानने से पहले इनकी भौगोलिक स्थिति के बारे में जानना जरूरी है, आज गोंड जनजाति के नाम से पहचान रखने वाले इस साम्राज्य का जिक्र हिंदू महाकाव्य रामायण में भी देखने को मिलता है जिसमें दंडकारण्य क्षेत्र को गोंड जनजाति का निवास स्थान कहा है। दण्डकारण्य यानी की आज का छत्तीसगढ़।
गोंड राजाओं ने भारत के गोंडवाना क्षेत्र पर शासन किया। गोंडवाना क्षेत्र मुख्य रूप से महाराष्ट्र के विदर्भ के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के गढ़ा राज्य और छत्तीसगढ़ के पश्चिमी भागों में फैला हुआ था। गोंडवाना राजाओं की कहानी मध्य प्रदेश के क्षेत्रों में ज्यादा मिलेंगी।
गोंडवाना राजवंश की स्थापना यादवराय ने 1328 ईस्वी में की थी, उन्होंने अपनी प्रारंभिक राजधानी सिंगौरगढ़ में बसायी जिसे बाद के गोंडवाना राजाओं ने चौरागढ़ और फिर रामगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया।
गोंड राजाओं में संग्राम शाह के बारे में बहुत कुछ मिलता है, इतिहास में इस बात का जिक्र है कि उनके शासनकाल में गोंड राज्य का व्यापक विस्तार हुआ। यही वो राजा थे जिन्होंने 52 गढ़ (किले) तक अपना शासन बढ़ाया। उन्होंने राजनीति, कूटनीति और साहित्य में विशेष योगदान दिया।
संग्राम शाह ने ही दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी और गुजरात के बहादुर शाह के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए। यानी कि अपनी राजनीतिक छवि को मजबूत किया, चंदेलों के साथ विवाह संबंध बनाते हुए अपने पुत्र दलपत शाह का विवाह चंदेल राजकुमारी दुर्गावती से किया। बाद में यही रानी दुर्गावती इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिख गईं।
चुनागढ़ (नरसिंहपुर), सिंगौरगढ़ (दमोह), मदन महल (गढ़ा), गढ़ मंडला जैसे कई किले इस काल के वास्तुककला के नायाब नमूने हैं। साहित्य और मुद्रा के मामले में भी गोंडवाना राजा किसी से कम नहीं थे। अकबर नामा में गोंड साम्राज्य के बारे में बहुत कुछ मिलता है।
गोंडवाना सम्राज्य का शौर्य तब और बढ़ गया जब राजा दलपत शाह की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने 1550 से लेकर 1564 तक गढ़ मंडला का कार्यभार देखा। रानी दुर्गावती ने अपने पुत्र वीरनारायण देव की संरक्षक के रूप में शासन किया। रानी दुर्गावती एक असाधारण महिला थीं जिन्होंने गड़-मंडला को अपने ज्ञान और साहस के साथ संभाला। वो एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार थीं, जिन्होंने अपनी सेना के साथ मुगलों और मराठों का सामना किया। रानी दुर्गावती ने 1564 ईस्वी में मुगल सेनापति आसफ खान से युद्ध किया। और वीरगति प्राप्त करने से पहले ही स्वयं अपने कटार से देश के लिए खुद की प्राणाहुति दे दी।
गोंड शासकों में अवंतीबाई लोधी का भी नाम बड़े गर्व से लिया जाता है उन्होंने ब्रिटिशों के खिलाफ रामगढ़ वर्तमान में डिंडोरी में विद्रोह किया। हार के बाद उन्होंने भी खुद को कटार से मारकर आत्मबलिदान दे दिया।
गोंड वंश एक शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्य था, जिसने 16वीं से 18वीं सदी तक छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों पर राज किया। आदिवासी समुदा के रूप में हमेशा से गोंडो की पहचान थी जो सदियों से इस क्षेत्र में बसते आए थे और इन्होंने एक समृद्ध संस्कृति और परंपरा का विकास किया।
गोंड शासक अपनी बहादुरी, ज्ञान और न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। गोंड शासक अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे। संख्या और संसाधनों में कमी होने के बावजूद, गोंडों ने वीरता से संघर्ष किया, और गुरिल्ला युद्ध और चालाक रणनीतियों का उपयोग कर अपने शत्रुओं को परेशान किया।
गोंड योद्धा युद्ध में बहादुरी और कौशल के साथ धनुष-बाण, तलवार और ढालों का उपयोग करते थे। वीरता और सूझबूझ के साथ मध्य भारत में अपनी छाप छोड़ने वाले गोंड शासक सांस्कृतिक धरोहरों के निर्माण में भी पीछे नहीं थे। आज गोंड साम्राज्य का गड़-मंडला का एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित है। जिसमें आदिवासी और हिंदू परंपराओं का अद्वितीय मिश्रण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। गोंड कुशल कलाकार, संगीतकार और नर्तक थे, जो अपनी भावनाओं को जीवंत चित्रकला, संगीत और नृत्य के माध्यम से व्यक्त करते थे।”
गोंड साम्राज्य गड़-मंडला एक खोया हुआ साम्राज्य हो सकता है, लेकिन इसकी धरोहर आज भी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के लोगों के दिलों और दिमाग में जीवित है। ये प्राचीन साम्राज्य हमें भारतीय लोगों की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और बहादुरी की याद दिलाता है, जिन्होंने हमेशा अत्याचार का विरोध किया और अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
नोटा- ये लेख विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ किताबों, रिसर्च और स्थानीय गाथाओं पर आधारित है। Seepositive का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।