छत्तीसगढ़ का ह्रदय स्थल रायपुर शहर का इतिहास अपने आप में एक गौरवगाथा है। आज का राजधानी रायपुर कभी कल्चुरियों की राजधान बना तो कभी माराठाओं का गढ़ रहा। कभी स्वामी विवेकानंद की कर्मभूमि बना तो कभी स्वतंत्रता आंदोलन का मजबूत हिस्सा रहा। यानी कि प्राचीन काल से ही रायपुर शहर हर दशक में एक ऐतिहासिक कहानी का साक्षी रहा। ऐसी ही एक कहानी है के तार जुड़े हैं दूधाधारी मठ मंदिर से जो रायपुर में ही स्थित है। कहते हैं यहां भगवान राम के साक्ष्य मौजूद हैं वहीं ये भी कहते हैं कि यहां के संत कभी भोजन ग्रहण नहीं करते थे वो दूध पीकर ही जिवित रहते थे।
500 साल पुरानी कहानी
रायपुर दूधाधारी मठ की स्थापना आज से लगभग 500 साल पहले 1554 में, महंत बलभद्र दासजी के लिए किया गया था। ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक राजा रघुराव भोसले ने महंत बलभद्र के लिए इस मठ की स्थापना की थी। ये मठ अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहां के संत दूध पीकर जीवित रहते थे और अन्न का त्याग कर चुके थे। यही कारण है कि मठ का नाम “दूधाधारी मठ” पड़ा। ये मठ न केवल अपने रहस्यमयी इतिहास के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की धार्मिक मान्यताओं और मंदिरों की पुरातनता भी इसे एक अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाती है।
महंत बलभद्र दासजी से जुड़ी है कहानी
दूधाधारी मठ की कहानी शुरू होती है इसके संस्थापक महंत बलभद्र दासजी से, जो हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने अपनी गाय सुरही के दूध से हनुमानजी की मूर्ति का अभिषेक करना शुरू किया, और उसी दूध का सेवन कर जीवन व्यतीत करने लगे। इस अनोखी जीवनशैली के कारण उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और सिर्फ दूध पीकर ही जीवित रहते थे। महंत बलभद्र दासजी की भक्तिभाव और आस्था इतनी गहरी थी कि उनकी आध्यात्मिक शक्ति के कारण उन्हें दिव्य अनुभूतियां प्राप्त होती थीं, और अंत में वह अचानक “अंतरध्यान” हो गए। उनके समाधि स्थल की स्थापना भी मठ में की गई है, जो आज भी भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र है।
रामायणकालिन वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध
दूधाधारी मठ के मंदिरों में मराठाकालीन चित्रकारी और स्थापत्य कला की झलक आज भी देखी जा सकती है। राम जानकी मंदिर, बालाजी मंदिर और हनुमान मंदिर यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। इन मंदिरों का निर्माण अलग-अलग समयों में अलग-अलग राजवंशों द्वारा किया गया था। रामजानकी मंदिर का निर्माण दाऊ परिवार ने कराया था, जबकि बालाजी मंदिर नागपुर के भोसले वंश द्वारा बनवाया गया था। इन मंदिरों में मौजूद प्राचीन मूर्तियां और चित्रकारी मराठाकाल के समय की धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं। भक्तों का मानना है कि यहां की देवी-देवताओं की मूर्तियों में अलौकिक शक्ति है, और यही कारण है कि यहां रोजाना सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
दूधाधारी मठ की धार्मिक परंपराएं
दूधाधारी मठ के समीप जैतूसाव मठ भी स्थित है, जहां रामसेतु का एक और पत्थर रखा गया है। जैतूसाव मठ में रामनवमी के अवसर पर विशेष मालपुआ का भोग लगता है, इस मठ की स्थापना लगभग 200 साल पहले हुई थी, और यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यहां की धार्मिक परंपराएं और त्योहार इस क्षेत्र की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करते हैं।
Positive सार
दूधाधारी मठ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिकता, इतिहास और परंपरा का संगम है। महंत बलभद्र दासजी की अनूठी साधना, भगवान श्रीराम और हनुमानजी के प्रति उनकी श्रद्धा, और रामसेतु का पाषाण इसे और भी विशिष्ट बनाते हैं। यहां की मराठाकालीन पेंटिंग और स्थापत्य कला हमें इतिहास के उस स्वर्णिम काल की याद दिलाती हैं, जब धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संजोने का प्रयास किया जाता था। हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आकर अपने आराध्य के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हैं और इस मठ के रहस्यों को जानने की कोशिश करते हैं।