पानी की किल्लत से जूझने वाली इस लड़की ने बच्चों की मदद से खड़ा कर दिया जंगल, पेड़, पानी और बचा रही है जीवन!



ये कहानी है महाराष्ट्र के लातूर के उदगिरी में 30 साल की अदिति पाटिल की, जो जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए एक मुहीम चला रही हैं। लॉ की पढ़ाई कर चुकी अदिति का कहना है कि उनके जीवन का एक ही मकसद है 
“पर्यावरण को बचाना”

अदिति का गांव सबसे ज्यादा सूखा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। उनके गांव में बाहर से पानी मंगवाकर पानी की आपूर्ति की जाती थी। यही नहीं दो-दो दिन पानी के लिए घड़ों की लाइन लगी रहती। गांव का वाटर लेवल 800 से 900 फीट नीचे चला गया।

एक वाकये को याद कर अदिति कहती हैं कि उनके गांव में लोग पानी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। एक बार वे शादी का एक फंक्शन अटेंड करने गयी थी। यहां किसी ने उनसे ये कह दिया कि पानी का टैंकर आया है। 5 मिनट में पूरा मैरिज हॉल खाली हो गया। सारे लोग शादी छोड़ पानी भरने दौड़ गए।

पुणे में हुआ पानी की कमी और बर्बादी का अहसास

अदिति साल 2010 पढ़ाई के लिए पूणे गयीं। वहां जाकर उन्हें अहसास हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति पानी की बर्बादी में लगा हुआ है। लोगों को पानी की कमी का एहसास ही नहीं है। लोग होली में पानी की बर्बादी करते थे। एक बार पानी की कमी की वजह से होली में पानी की बर्बादी को लेकर बैन लगा दिया गया तो लोग विरोध के लिए सड़कों पर आ गए। ये सब देखकर अदिति का मन उनके गांव में पानी की किल्लत को दूर करने की तरफ गया।

मियावाकी फॉरेस्ट पर किया काम

अदिति ने मियावाकी फॉरेस्ट के बारे में रिसर्च किया जो छोटे-छोटे जंगल लगाने में सहायक साबित होता है। उन्होंने काफी रिसर्च किया और इस तकनीक से मदद लेने की सोची।

मियावाकी तकनीक एक छोटी सी जगह में जंगल उगाने का अच्छा तरीका है। ये खास तकनीक जापान के वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी की खोज थी। उनका मानना था कि चर्च और मंदिर जैसी धार्मिक जगहों पर पौधे अपने-आप पैदा हो जाते हैं, यही वजह है कि ये लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं।

लेकिन अदिति के पास एक समस्या थी। न तो उनके पास जमीन थी और न ही पैसे। ऐसे में लातूर में ये काम काफी मुश्किल थी। लातूर का फारेस्ट कवर एरिया एक प्रतिशत से भी कम था, जबकि ये 35 प्रतिशत होना चाहिए। बारिश के लिए जंगल होना बेहद जरूरी है। अदिति ये बखूबी समझती थीं कि उनके गांव में बारिश के लिए जंगल, जंगल के लिए पेड़ पौधे और पौधों को उगने के लिए पानी की जरूरत थी जो काफी ज्यादा महंगा था।

सीड बॉल अभियान से राह हुई आसान

अदिति बताती हैं कि उनके जैसे कई और लोग थे जो पानी की कमी से परेशान थे। वो भी पानी की किल्लत को दूर करने के लिए काम करना चाहते थे। अदिति ने ऐसे लोगों की मदद की और रिसर्च के दौरान उन्हें सीड बॉल तकनीक के बारे में पता चला। जापानी प्राकृतिक खेती के साइंटिस्ट मसानोबु फुकुओका ने सीड बॉल का कंसेप्ट दिया था। अदिति ने साथियों की मदद से सीड बॉल बनाया। ये तकनीक काम आयी। जब सीड बॉल में कोंपल आई तो उन्हें लगा चलो कामयाबी का पहला पायदान चढ़ गए। उन्होंने स्कूल के बच्चों की मदद से सीड बॉल बनाए।

इसके बाद अदिति ने 2018 में सीड बॉल अभियान शुरू किया। करीब 200 से ज्यादा स्कूलों में सीड बॉल की वर्कशॉप करने पर बच्चों का इंटरेस्ट जागा। अदिति के साथ अब तक एक लाख से ज्यादा स्टूडेंट सीड बॉल अभियान से जुड़ चुके हैं, ताकि हरियाली का ये अभियान चलता रहे।

बदल रही है लातूर और उदगिर की तस्वीर

अदिति कहती हैं कि साथियों के साथ मिलकर दो छोटे जंगल भी उगाए जो पांच हजार स्क्वायर मीटर में लगाए गए हैं। आज इन जंगल में 2500 से ज्यादा पेड़ हैं। इसका असर आने वाले 10-15 सालों में होगा। अदिति कहती हैं कि, “हरियाली को बचाना था, ताकि पानी की समस्या दूर हो। यहां की पानी समेत सभी समस्याओं से निपटने के लिए एक ऐसे समाधान की जरूरत थी, जो आर्थिक रूप से बोझ भी न बने और वहां के ईको सिस्टम को सुरक्षित रखे।”

कैसे बनता है सीड बॉल ?

सीड बॉल को तैयार करने के लिए मिट्टी के दो और खाद का एक हिस्सा लेकर उसमें बीज डालते हैं और पानी मिलाकर गेंद की तरह आकार तैयार करते हैं। इसके बाद इसे दो दिन छांव में सुखायने रखा जाता है। सुखाने के बाद इसे ऐसी जगहों पर फेंक दिया जाता है, जहां हम हरियाली की जरूरत हो। ये बीज पानी पाते ही पनपने लगता है। इस तरह बगैर पौधारोपण किए बड़ी संख्या में एक साथ बहुत सारे पौधे उगाना आसान हो गया। सीड बॉल की सबसे अच्छी बात यह है कि इसके अंदर बीज सुरक्षित होते हैं। इसे चिड़िया वगैरह नहीं खा सकतीं, जिससे बीज को पनपने और धरती में जमने में मदद होती है। एक सीड बॉल बनाने की कीमत सिर्फ 10 रुपए है।

अदिति और हर उस व्यक्ति की मेहनत रंग ला रही है जो पानी की समस्या को खत्म करने के लिए इस मुहीम से जुड़ा है।

Avatar photo

Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

ALSO READ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *