Palamu farmer success story: झारखंड के पलामू जिले के किसानों ने अब अपनी पारंपरिक खेती का ढर्रा बदलना शुरू कर दिया है। जहाँ पहले खेतों में सिर्फ गन्ना, धान और मक्का दिखाई देता था, वहीं अब वहां की मिट्टी ‘लाल सोना’ यानी स्ट्रॉबेरी उगल रही है। पलामू के चैनपुर प्रखंड अंतर्गत सगालिम गांव के एक किसान परमेंद्र कुमार ने अपनी मेहनत और आधुनिक सोच से जिले में कृषि की नई इबारत लिख दी है। गन्ने की पारंपरिक खेती को अलविदा कहकर उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती अपनाई और आज वे न केवल मालामाल हो रहे हैं, बल्कि पूरे इलाके के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं।
गन्ने से स्ट्रॉबेरी तक का सफर
परमेंद्र कुमार लंबे समय से गन्ने की खेती कर रहे थे, लेकिन उसमें लागत और समय के मुकाबले मुनाफा सीमित था। बदलाव की तलाश में उन्हें उद्यान विभाग के विशेषज्ञों, विशेषकर विवेक कुमार और रंजन दुबे से मार्गदर्शन मिला। शुरुआत में मन में थोड़ा डर और असमंजस था, क्योंकि पलामू जैसे शुष्क इलाके में स्ट्रॉबेरी की खेती एक नया प्रयोग था। लेकिन सरकारी सहयोग और विशेषज्ञों के प्रोत्साहन ने उन्हें हिम्मत दी और उन्होंने अपने 2.5 एकड़ खेत में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का फैसला किया।
ऑर्गेनिक खेती पर जोर
परमेंद्र कुमार ने इस खेती को पूरी तरह वैज्ञानिक और ऑर्गेनिक (Organic Farming) तरीके से अपनाया है। इस प्रोजेक्ट की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं,
- पौधों का चयन, खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले पौधे महाराष्ट्र के नासिक से उद्यान विभाग के माध्यम से मंगाए गए।
- कुल लागत, 2.5 एकड़ की इस आधुनिक खेती में करीब 4 लाख रुपये की शुरुआती लागत आई।
- ऑर्गेनिक पद्धति, सबसे खास बात यह है कि परमेंद्र ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों से दूरी बनाकर रखी है। वे पूरी तरह से जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं, जिससे फल की गुणवत्ता और स्वाद दोनों ही बेहतर हैं।
बाजार और रिकॉर्ड मुनाफा
स्ट्रॉबेरी एक ऐसी फसल है जो तैयार होने के बाद तुरंत बाजार की मांग पकड़ लेती है। फिलहाल, परमेंद्र के खेत से रोजाना 30 से 35 किलो स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हो रहा है। इसकी मांग सिर्फ स्थानीय बाजार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे झारखंड के अन्य जिलों सहित बिहार और कोलकाता के बड़े बाजारों में भी भेजा जा रहा है।
बाजार में स्ट्रॉबेरी की कीमत ₹300 प्रति किलो तक मिल रही है। प्रतिदिन की आय का हिसाब लगाया जाए तो यह गन्ने की खेती के मुकाबले कई गुना अधिक मुनाफा दे रही है। नगदी फसल होने के कारण किसान के पास पैसे का रोटेशन भी बना रहता है।
कृषि के बदलते स्वरूप का प्रतीक
पलामू के सगालिम गांव की यह सफलता कहानी दर्शाती है कि अगर किसान पारंपरिक फसलों के मोह से बाहर निकलकर बाजार की मांग के अनुरूप खेती करें, तो वे अपनी आर्थिक स्थिति को काफी मजबूत कर सकते हैं। उद्यान विभाग की योजनाओं और तकनीकी सहयोग ने किसानों के भीतर नया आत्मविश्वास पैदा किया है। परमेंद्र कुमार का यह कदम न केवल उनकी आय बढ़ा रहा है, बल्कि अन्य ग्रामीण युवाओं को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहा है।
Positive Takeaway
स्ट्रॉबेरी की खेती झारखंड के जलवायु में एक सफल प्रयोग साबित हो रही है। कम पानी और सही प्रबंधन के साथ पलामू की बंजर मिट्टी में भी सोना उगाया जा सकता है। परमेंद्र कुमार जैसे प्रगतिशील किसान यह साबित कर रहे हैं कि खेती अब घाटे का सौदा नहीं, बल्कि एक लाभकारी बिजनेस मॉडल है।

