Paddy Toran on Diwali: छत्तीसगढ़ को पूरे भारत में “धान का कटोरा” (Rice Bowl of India) कहा जाता है। यहाँ धान केवल फसल नहीं, बल्कि जीवन, संस्कृति और आस्था का हिस्सा है। इसलिए जब दीवाली आती है, जो मां लक्ष्मी की पूजा और समृद्धि का पर्व है। तो यहाँ के लोग धान की बाली से बने तोरण (झालर) अपने घरों के मुख्य द्वार पर लगाते हैं। यह परंपरा केवल सजावट नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, कृषि और श्रद्धा का एक सांस्कृतिक संगम है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छत्तीसगढ़ में धान की बाली को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। दीवाली के दिन जब लोग लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं, तब धान की बाली भी पूजा का हिस्सा बनती है, क्योंकि यह अन्न, धन और समृद्धि का प्रतीक है।
धान तोरण लगाने का अर्थ
- नए कृषि वर्ष की शुरुआत का स्वागत
- आने वाली फसल की खुशहाली की प्रार्थना
- घर में सुख-समृद्धि का आमंत्रण
इसलिए हर घर के मुख्य द्वार पर धान की बालियों से बना तोरण लटकाया जाता है। यह न केवल शुभता लाता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि अन्न ही सच्चा धन है।
तोरण और लक्ष्मी का वास
लोक मान्यता के अनुसार, जहाँ अन्न का आदर होता है, वहाँ लक्ष्मी का वास होता है। धान की बाली से बने तोरण को दरवाजे पर लगाने से माना जाता है कि लक्ष्मी स्वयं उस घर में प्रवेश करती हैं। इससे घर में संपन्नता, सुख-शांति और सौभाग्य आता है।
- तोरण को मंगलसूचक चिह्न भी माना जाता है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
- यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह अन्न और कृषि देवताओं का सम्मान भी है।
‘चिरई चुगनी’ का महत्व
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में इस परंपरा को “चिरई चुगनी” कहा जाता है। जब दीवाली खत्म हो जाती है और तोरण को उतारा जाता है, तो उसे पक्षियों के लिए भोजन के रूप में छोड़ दिया जाता है। यह क्रिया न केवल दया और करुणा का प्रतीक है, बल्कि यह प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण संरक्षण की भावना भी सिखाती है।
धान की बाली से बने ये झूमर (झालर) गांवों के बाजारों में हस्तनिर्मित सजावट के रूप में बनाए और बेचे जाते हैं। इन्हें घरों, दुकानों और मंदिरों के द्वारों पर लटकाया जाता है।
कृषि संस्कृति और तोरण का संबंध
- छत्तीसगढ़ की संस्कृति का मूल आधार कृषि और प्रकृति है।
- यहाँ हर त्योहार फसल, मौसम और धरती के आशीर्वाद से जुड़ा है।
- धान का तोरण दर्शाता है कि कृषि सिर्फ पेशा नहीं, बल्कि पूजा है।
- यह किसानों के परिश्रम, भूमि के आभार और जीवन की निरंतरता का प्रतीक है।
- यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आई है और आज भी हर घर में इसको अपनाया जाता है।
- धान के तोरण का हर रेशा हमें यह याद दिलाता है कि हमारा जीवन प्रकृति और अन्न से ही संभव है।
सौंदर्य, आस्था और पर्यावरण का मेल
आधुनिक समय में जहाँ प्लास्टिक और कृत्रिम सजावट का चलन बढ़ गया है, वहीं धान की बाली से बना तोरण पर्यावरण के लिए पूरी तरह अनुकूल है।
जैविक और प्राकृतिक सजावट
- इससे कोई कचरा या प्रदूषण नहीं होता।
- यह ग्रामीण कला और लोक हस्तशिल्प को भी बढ़ावा देता है।
- इस तरह, यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सतत जीवनशैली (sustainable living) का भी उदाहरण है।
धान की बाली का तोरण
छत्तीसगढ़ की दीवाली में धान की बाली से बना तोरण सिर्फ़ सजावट नहीं, बल्कि कृषि जीवन, प्राकृतिक आशीर्वाद और समृद्धि का प्रतीक है।
यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि अन्न का सम्मान, प्रकृति का आदर और परिश्रम की पूजा — यही असली लक्ष्मी प्राप्त करने का मार्ग है। तो जब आप अगली बार दीवाली पर किसी घर के द्वार पर धान की झालर देखें, तो जानिए वह सिर्फ़ एक सजावट नहीं, बल्कि धरती, धन और देवी का संगम है।