Irrigation Methods: फसलों की अच्छी पैदावार के लिए सही समय में और सहीं मात्रा में पानी देना बेहद जरूरी है। इसके लिए सिंचाई के सही तरीके को जानना महत्वपूर्ण हो जाता है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां बारिश कम होती है किसनों को सिंचाई पर खास ध्यान देना होता है। आज के समय में सिंचाई (Irrigation Methods) के परंपरागत तरीकों के अलावा भी कई मॉर्डन मेथड्स आ चुके हैं। जिनके जरिए फसलों को उतनी ही मात्रा में पानी दिया जाता है जितनी जरूरत हो। आइए विस्तार से जानते हैं सिंचाई के मॉर्डन और ट्रेडिशनल तरीकों के बारे में।
सिंचाई के ट्रेडिशनल तरीके
पारंपरिक सिंचाई के तरीके सालों से अपनाए जा रहे हैं। ये सरल और कम खर्चीले होते हैं लेकिन इन तरीकों में मेहनत ज्यादा लगती है साथ ही पानी की भी ज्यादा मात्रा खर्च होती है। गांवों में आज भी इन्ही विधियों से सिंचाई की जाती है।
चेक बेसिन मेथड–
इस तरीके से सिंचाई के तरीके (Irrigation Methods)में खेत को छोटे-छोटे भागों या बेसिन में बांटा जाता है और हर हिस्से में पानी भरा जाता है। इससे मिट्टी पानी की पर्याप्त मात्रा को सोख लेती है जिससे उस खेत या जगह की पूरी मिट्टी नम हो जाती है। इस तरह की सिंचाई में ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं होती। इस तरीके में कभी-कभी जल भराव का खतरा रहता हैय़
फर्रो (नाली) सिंचाई–
इस मेथड में खेत में फसलों की कतारों के बीच नालियां बनाई जाती हैं और पानी को ऊपरी सिरे से छोड़ा जाता है, ताकि वह नालियों के जरिए सभी जगह बराबर मात्रा में पहुंचे। यह तरीका कतारों में लगाई गई फसलों के लिए अच्छा होता है।
मैन्युअल सिंचाई–
मैन्युअल सिंचाई में पानी को बाल्टी या छोटे कंटेनरों से फसलों तक पहुंचाया जाता है। यह विधि छोटे खेतों में ही संभव है क्योंकि यह बहुत समय और मेहनत मांगती है।
ढेकली और मोट सिस्टम–
सिंचाई का ये सिस्टम काफी पुराने समय से चला आ रहे हैं। ढेकली प्रणाली में लीवर के जरिए पानी को खींचा जाता है। वहीं मोट प्रणाली में बैल के जरिए पानी को खींचा जाता हैं फिर नालियों के जरिए पानी फसलों तक पहुंचता है। इस तरह की सिंचाई छोटी जगहों पर ही संभव है।
आधुनिक सिंचाई के तरीके
सिंचाई के मॉर्डन टेक्निक्स को अपनाना ज्यादा फायदेमंद रहता है। इसका कारण है इससे कम मेहनत में बड़े एरिया को पानी दिया जा सकता है। पानी की मात्रा तय करके फसलों के उत्पादन को भी बढ़ाया जा सकता है।
स्प्रिंकलर सिस्टम–
स्प्रिंकलर सिस्टम सिंचाई (Irrigation Methods) का सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। इसमें पाइप और घूमने वाले नोजल का यूज करके बारिश की बौछार करके फसलों को पानी दिया जाता है। रेतीली और पहाड़ी इलाकों में इसका उपयोग ज्यादा होता है। आजकल मैदानी इलाकों में भी सिंचाई के लिए किसानों की पहली पसंद स्प्रिंकलर सिस्टम बन गया है।
स्प्रिंकलर सिस्टम के फायदे–
– ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी कारगर
– मिट्टी का कटाव रोकने में मददगार
– फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइट्स छिड़काव में भी सहायक
ड्रिप सिस्टम
ड्रिप सिंचाई में, पानी को पाइपों और छोटे-छोटे होल्स के जरिए सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। इसमें पानी धीरे-धीरे टपकता है, जिससे पानी की कम मात्रा खर्च होती है। इस टेक्निक का उपयोग उन फसलों के लिए ज्यादा किया जाता है, जिन्हें पानी की कम मात्रा चाहिए होती है।
ड्रिप सिंचाई के फायदे
– पानी की बर्बादी कम होती है
– सीधे जड़ों तक पानी पहुंचता है
– खेत में खरपतवार कम उगते हैं
– मिट्टी का ऊपरी हिस्सा सूखा रहता है जिससे बैक्टीरिया पनपने की संभावन कम होती है
सब सर्फेस सिंचाई
सब सर्फेस सिंचाी में पानी के पाइप्स को सीधे मिट्टी के अंदर लगाए जाते हैं, जिससे पानी जड़ों तक पहुंचता है। यह तरीका उन क्षेत्रों में बहुत उपयोगी है जहां पानी तेजी से वाष्पीकरण होता है।
सेंटर पिवट सिंचाई
सेंटर पिवट सिंचाई में एक बड़ी मशीन से सिंचाई की जाती है। मशीन में चक्के लगे होते हैं और उचांई में लंबी पाइप लगी होती है। इन पाइप्स से ही पानी बौछार की तरह गिरता है। इस मशीन का मुख्य हिस्सा एक जगह पर रहता है और स्प्रिंकलर वाला हिस्सा चारों तरफ घूमताहै। इससे कम पानी से बड़े एरिया को आसानी से सींचा जा सकता है।
आधुनिक सिंचाई का महत्व
पारंपरिक से आधुनिक सिंचाई की ओर बढ़ने से कृषि में पानी की बचत और उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। सिंचाई के आधुनिक तरीके पानी तो बचाते ही हैं साथ ही फसलों की पैदावार को भी बढ़ाते हैं। आधुनिक तरीकों में कम मेहनत में ज्यादा एरिया में सिंचाई हो जाती है। बारिश पानी की कमी होने पर सिंचाई के तरीके से फसलों को पानी देते हैं इसलि इसकी सही विधि को जानना जरूरी है।