PMH1-LP: पहली फाइटिक एसिड मक्के की हाईब्रिड किस्म जारी, किसानों को लाभ



PMH1-LP: हाल के दिनों में जलवायु परिर्वतन किसानों के लिए परेशानी का कारण बना है। जिसकी वजह से अनिश्चित बारिश या फिर अधिक बारिश के हालात देखने को मिले हैं। ऐसी परिस्थितियों में देश के विभिन्न राज्यों की सरकारें जलवायु परिर्वतन से निपटने और जमीन की उर्वरक क्षमता को बनाए रखने के लिए फसल विविधिकरण यानी कि क्रॉप डाइवरसिफिकेशन (Crop Diversification) पर जोर दे रहे हैं।

यही वजह है कि भारत में कई राज्य सरकारें मक्के की खेती पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही हैं। और इसी बीच उन किसानों के लिए अच्छी खबर आई है, जो मक्के की खेती करते हैं।

दरअसल इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मक्का रिसर्च (ICAR-IIMR) लुधियाना ने पहली कम फाइटिक एसिड मक्का की हाइब्रिड किस्म को जारी कर दिया है। जिसका नाम पीएमएच 1-एलपी (PMH1-LP) है। इसे उन किसानों के लिए फायदेमंद माना जा रहा है जो हाईब्रिड किस्म के मक्के की व्यावसायिक खेती करना चाहते हैं।

PMH1 मक्के का उन्नत वर्जन

फिलहाल देशभर के किसानों के पास मक्के की पीएमएच 1 (PMH 1) किस्म मौजूद है, जिसका प्रयोग किसान मक्के की बुवाई के समय करते हैं। मक्के की इस किस्म को साल 2007 में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने विकसित किया था। इसी का उन्नत वर्जन पीएमएच 1-एलपी (PMH1-LP) को माना जा रहा है। यह मक्के का एक हाईब्रिड किस्म है, जिसे IIMR लुधियाना ने जारी किया है, IIMR के अनुसार पीएमएच 1-एलपी (PMH1-LP) उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (NWPZ) में वाणिज्यिक खेती के लिए जारी किया गया है, जो देश में पहला कम फाइटेट मक्का हाइब्रिड की किस्म है।

किसानों को मिलेगा फायदा

IIMR लुधियाना की तरफ से जारी मक्के की पीएमएच 1-एलपी (PMH1-LP) किस्म को व्यवासायिक खेती के लिए लाभदायक माना जा रहा है। ऐसा भी कहा जा रहा है, कि पीएमएच 1-एलपी (PMH1-LP) में अपने मूल संस्करण, पीएमएच 1 की तुलना में 36% कम फाइटिक एसिड है, जिसमें अकार्बनिक फॉस्फेट की 140% अधिक उपलब्धता रहती है।


उपज क्षमता 95 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

ऐसा कहा जा रहा है कि पीएमएच 1-एलपी (PMH1-LP) किस्म की उपज क्षमता 95 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से ज्यादा है। यह किस्म मेडिस लीफ ब्लाइट, टरसिकम लीफ ब्लाइट, चारकोल रोट जैसे प्रमुख रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोध तो है ही, साथ ही मक्का स्टेम बेधक और फॉल आर्मीवर्म जैसे कीट भी हैं। पोल्ट्री क्षेत्र में हाइब्रिड के महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद भी की जा रही है।

IIMR ने कहा कि, चारा उद्योग में मक्का का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है। कुक्कुट क्षेत्र ऊर्जा स्रोत के लिए मक्के के दानों पर सबसे ज्यादा निर्भर है। मक्के के दानों में फाइटिक एसिड प्रमुख पोषण-विरोधी कारकों में से एक है जो लोहे और जस्ता जैसे खनिज तत्वों की जैव-उपलब्धता को प्रभावित करता है। यह पोल्ट्री कूड़े में उच्च फास्फोरस की उपस्थिति के कारण जल निकायों के यूट्रोफिकेशन के कारण पर्यावरण प्रदूषण का भी कारण बनता है।

Avatar photo

Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

ALSO READ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

CATEGORIES Business Agriculture Technology Environment Health Education

info@seepositive.in
Rishita Diwan – Chief editor

8839164150
Rishika Choudhury – Editor

8327416378

email – hello@seepositive.in
Office

Address: D 133, near Ram Janki Temple, Sector 5, Jagriti Nagar, Devendra Nagar, Raipur, Chhattisgarh 492001

FOLLOW US

GET OUR POSITIVE STORIES

Uplifting stories, positive impact and updates delivered straight into your inbox.