Chhattisgarh: छत्तीसगढ़, जिसे भारत का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, न केवल अपनी उपजाऊ भूमि और जलवायु के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी संस्कृति, जीवनशैली और त्योहार भी चावल से गहराई से जुड़े हुए हैं। आइए, जानते हैं इस उपाधि के पीछे की दिलचस्प कहानी।
चावल से जुड़ी संस्कृति
छत्तीसगढ़ की संस्कृति चावल पर आधारित है। यहां के हर आयोजन में चावल का विशेष स्थान है। चाहे त्योहार हो, पारंपरिक भोजन, या सांस्कृतिक अनुष्ठान, चावल यहां के समाज की आत्मा है। छत्तीसगढ़ केवल एक चावल उत्पादक राज्य नहीं है; यह चावल खाने वालों की सबसे बड़ी आबादी वाला क्षेत्र भी है।
धान की अद्वितीय विविधता
छत्तीसगढ़ में धान की 20,000 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं। इनमें औषधीय गुणों वाली किस्में भी शामिल हैं, जो डायबिटीज और अन्य बीमारियों के इलाज में उपयोगी होती हैं। यहां की मिट्टी और जलवायु धान की खेती के लिए जैसे प्रकृति ने विशेष रूप से तैयार की है। यही कारण है कि राज्य का लगभग 88% हिस्सा धान की फसल से आच्छादित है।
स्वदेशी समुदाय और धान की विरासत
छत्तीसगढ़ के स्वदेशी समुदाय सदियों से धान की खेती कर रहे हैं। उन्होंने चावल की देशी किस्मों को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह न केवल उनकी आजीविका का साधन है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा भी है।
धान की राजधानी
धमतरी, जो रायपुर से लगभग 70 किमी दूर स्थित है, छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में साल में दो बार धान की खेती होती है। धमतरी से उत्पादित चावल देशभर में पुलाव, बिरयानी, पोहा और खिचड़ी के रूप में अपनी जगह बनाता है।
यहां के खेतों में काम करने वाली महिलाओं की भूमिका भी उल्लेखनीय है। रोपाई, निराई-गुड़ाई और कटाई जैसे हर महत्वपूर्ण कार्य में उनका योगदान है। महिलाएं छत्तीसगढ़ की कृषि की रीढ़ हैं।
डॉ. आर.एच. रिछारिया का योगदान
धान की इतनी किस्मों को संरक्षित करने का श्रेय डॉ. आर.एच. रिछारिया को जाता है। उन्होंने 1975 से 1980 के बीच छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में जाकर 23,000 किस्मों का संग्रहण किया। उन्होंने इन किस्मों के गुणों का परीक्षण कर उन्हें लिपिबद्ध किया। आज, इन किस्मों की डीएनए फिंगरप्रिंटिंग हो रही है, जिससे नई किस्मों का विकास हो सके।
धान पर अनुसंधान का केंद्र
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, धान अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है। यहां की टीम ने धान की 90 नई किस्में विकसित की हैं। प्रदेश के सभी जिलों की खास धान किस्मों को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए विश्वविद्यालय ने एक नई योजना शुरू की है। छोटे दाने वाले सुगंधित धान और जल्दी पकने वाली किस्मों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
धान की अनोखी विशेषताएं
छत्तीसगढ़ में उगने वाले धान की कई किस्में अपनी खुशबू और औषधीय गुणों के लिए जानी जाती हैं। कुछ किस्में कम पानी में भी तैयार हो जाती हैं, जबकि कुछ अधिक पानी में भी बची रहती हैं। यह विविधता छत्तीसगढ़ को अन्य राज्यों से अलग और खास बनाती है।
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Positive सार
छत्तीसगढ़ केवल चावल का उत्पादन करने वाला राज्य नहीं है। यह धान के माध्यम से अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपरा और वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाता है। यह राज्य न केवल अपने नागरिकों के लिए, बल्कि देश और दुनिया के लिए भी एक मिसाल है। धान के हर दाने में छत्तीसगढ़ की मिट्टी की खुशबू और यहां के किसानों की मेहनत समाई हुई है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ गर्व से ‘धान का कटोरा’ कहलाता है।