HIGHLIGHTS:
- Water conservation की मिसाल पेश कर रहा है झारखंड का आदिवासी गांव
- Jharkhand के खूंटी जिले में आता है आदिवासी बहुल गांव ‘गूनी’
- Water conservation के लिए मिल चुका है नेशनल अवार्ड (National Award)
Water conservation initiative के लिए नेशनल अवार्ड (National Award) जीत चुका झारखंड का यह छोटा सा गांव हम सबके लिए एक मिसाल है। 400 आबादी वाले इस ‘गूनी’ गांव में आज जल संरक्षण, स्वच्छता मिशन और सामूहिक खेती जैसे कामों से बदलाव की लहर चल रही है।
Water conservation पर हो रहा है शानदार काम
जल संरक्षण के वैसे तो कई उपाय बड़े स्तर पर हो रहे हैं, लेकिन ‘गूनी गांव’ का जल संरक्षण मॉडल (water conservation model) अपने आप में काफी खास है। आदिवासी बहुल इस गांव के लोगों ने अपने गांव में पानी की कमी को दूर करने के लिए किसी सरकारी योजना का इंतजार नहीं किया। बल्कि जल संरक्षण (Water conservation) के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझा और काम पर लग गए।
जल संरक्षण (Water conservation) के लिए 400 एकड़ में बना दी मेड़
ग्रामीणों ने पानी को बचाने के ले लगभग 400 एकड़ जमीन पर मेड़बंदी की है। दीनदयाल ग्राम स्वावलंबन योजना की मदद से 24 अप्रैल 2020 से इस गांव में मेड़बंदी का काम शुरू हुआ। जिसके बाद मेड़बंदी और टीसीब के एक गढ्ढे में 3000 लीटर पानी जमा होता है। ग्रामीणों की इस मुहिम से भूजल का लेवल बढ़ा और आज गुनी गांव में पानी की समस्या न के बराबर है। ग्रामीणों ने जल संरक्षण के इस लक्ष्य को केवल तीन सालों के अंदर ही पूरा किया है। जिसके लिए भारत सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से झारखंड (Jharkhand) के इस ‘गूनी गांव’ गांव को वाटर अवार्ड (Water Award) मिल चुका है। वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट (Water Resource Management) में गांव को तीसरा स्थान मिला है।
सफाई में भी अव्वल है ‘गूनी गांव’
सफाई के लिए ग्रामीणों ने 65 घरों से 6 टोलियां बनाई है। जिसमे बच्चे-बुजुर्ग सभी शामिल हैं। ग्रामीणों के दिन की शुरूआत सुबह 5 बजे की घंटी से होती है। ये घंटी सफाई के लिए होती है। इस घंटी के बाद ग्रामीणों की टोली सफाई के लिए घरों से निकल जाती है। 65 परिवारों की सभी 6 टोलियों के सदस्यों का सफाई में शामिल होना जरूरी होता है। अगर किसी कारण से कोई अनुपस्थित होता है तो उसे ग्रामसभा को बताना होता है। ग्रामीणों न कचरा प्रबंधन भी शानदार तरीके से किया है इसके लिए गूनी गांव में जगह-जगह बांस के कूड़ेदान बनाए गए हैं। इसके अलावा स्थानीय खेती पर भी ग्रामीण महिलाएं अब ध्यान दे रही हैं।