

Combat Aircraft: DRDO ने 1 जुलाई को ‘ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डेमनस्ट्रेटर’ की पहली सफल उड़ान में सफलता हासिल की है। इस उड़ान के जरिए भविष्य में मानव रहित स्टेल्थ विमानों यानी कि स्टेल्थ यूएवी के विकास की दिशा में काम किया जाएगा। जो कि भारत के लिए एक प्रभावशाली कदम माना जा रहा है।
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डेमनस्ट्रेटर की पहली उड़ान को कर्नाटक के चित्रदुर्ग स्थित एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज से सफलतापूर्वक उड़ाया गया। पूर्णतया ऑटोमेटिक रूप से काम करते हुए इस ऑटोनोमस-एयरक्राफ्ट ने एक आदर्श उड़ान भरी, जिसमें टेक-ऑफ, वे पॉइंट नेविगेशन और एक स्मूथ टचडाउन शामिल है।
महत्वपूर्ण कदम
ऑटोनॉमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डेमनस्ट्रेटर की इस उड़ान को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि इसके सफल संचालन ने भविष्य के मानव रहित विमानों के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन को नई दिशा दी है। और इस तरह की रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है। इस तकनीक से स्वदेशी स्टेल्थ अटैक-ड्रोन को बनाने से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। स्टेल्थ तकनीक के चलते इस तरह के यूएवी दुश्मन की रडार को भी चकमा देने में महत्वपूर्ण होंगे।
मानव रहित इस हवाई विमान को डीआरडीओ (DRDO) की बेंगलुरु स्थित एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एडीई) प्रयोगशाला द्वारा डिजाइन किया गया है साथ ही यही विकसित भी किया गया है। यह एक छोटे टर्बोफैन इंजन द्वारा चलता है। विमान के लिए उपयोग किए जाने वाले एयरफ्रेम, अंडरकैरिज और पूरी उड़ान नियंत्रण तथा वैमानिकी प्रणाली को स्वदेशी रूप से विकसित किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ बधाई देते हुए कहा है कि यह स्वायत्त विमानों की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है और इससे महत्वपूर्ण सैन्य प्रणालियों के संदर्भ में ‘आत्मनिर्भर भारत’ का मार्ग प्रशस्त होगा।