2030 तक भारतीय इंडियन ट्रैक्टर मार्केट का साइज 12.7 बिलियन डॉलर यानी कि करीब 104 लाख करोड़ रुपय तक पहुंच जाएगा। 2020 में यह 7.5 बिलियन डॉलर यानी कि करीब 60,000 करोड़ रुपए का था। विशेषज्ञों की मानें तो प्री ओन्ड ट्रैक्टर का मार्केट भी उतना ही बड़ा होगा। जितना कि नए मार्केट का। अगर हम इन प्री-ओन्ड ट्रैक्टरों के फाइनेंसिंग से होने वाले रेवेन्यू और इंश्योरेंस को आपस में जोड़ते हैं, तो यह हमें $10 बिलियन के आश्चर्य करने वाले आंकड़े तक ले जाता है।
यूज्ड ट्रैक्टर सेगमेंट का महत्व
सभी किसान नए ट्रैक्टर और कृषि उपकरण खरीदने का रिस्क नहीं ले सकते हैं। भारत के लगभग 86% किसान छोटे और सीमांत हैं जिनकी दो हेक्टेयर से भी कम की कृषि भूमि है। ऐसे में यूज्ड ट्रैक्टर और उपकरण अहम हो सकते हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यह कम कीमत पर आसानी से उपयोग के लिए उपलब्ध हो जाती है। यह सीमांत, छोटे और मध्यम किसानों को पैसे बचाने में उपयोगी होता है। एक नया ट्रैक्टर 5-8 लाख रुपए में मिल जाता है। तो वहीं 3 साल पुराना ट्रैक्टर 4-6 लाख में मिल जाता है। किसान कम डाउन पेमेंट और EMI के कम बोझ के साथ अपना काम करता है।
फाइनेंसिंग विकल्प
फिलहाल, 50 से ज्यादा बैंक और NBFC प्री-ओन्ड ट्रैक्टर्स सेगमेंट में फाइनेंसिंग ऑप्शन देते हैं। इसकी डाउन पेमेंट भी एक नए ट्रैक्टर की तुलना में बहुत ही कम होती है। एक नए ट्रैक्टर के लिए जहां 1.5-2 लाख रुपए का भुगतान करना होता है। तो वहीं यूज्ड ट्रैक्टर के लिए 50,000-1 लाख रुपए में काम होता है। प्री-ओन्ड ट्रैक्टर सेगमेंट में ऑर्गेनाइज्ड प्लेयर्स की मौजूदगी से चुनने और खरीदने की प्रोसेस भी आसान हुई है।
13 करोड़ किसान परिवार में 80 लाख ट्रैक्टर
भारतीय कृषि क्षेत्र GDP में लगभग 18-19% का महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। देश में लगभग 13 करोड़ किसान परिवार रहते हैं। लेकिन कुल ट्रैक्टर केवल 80 लाख किसानों के पास है। यह तुलना इस बात का अंदाजा लगवाती है, ट्रैक्टर वाले किसानों की संख्या कितनी कम है। ऐसे में ट्रैक्टर और फार्म इक्विपमेंट सेगमेंट की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो फार्म मॉडर्नाइजेशन में हेल्पफुल होता है। यह उत्पादन भी बढ़ाता है। जो खेती को मुनाफा देने वाला किसानी का उद्योग हो सकता है।