“मैंने एक बंद दरवाज़े को खोला था”
एक इंटरव्यू में ऐसा कहने वाली फातिमा बीबी भारत की नहीं बल्कि एशिया में पहली सुप्रीम कोर्ट की महिला जज थीं। एम. फातिमा बीवी (Supreme Court woman Judge M. Fathima Beevi) ही वो नाम है जिन्होंने पुरुष प्रधान न्यायतंत्र में अपनी एक जगह बनाई।
एम. फातिमा बीबी का नाम उन चुनिंदा महिलाओं में शुमार है जिन्होंने महिलाओं के लिए बनाए गए रूढ़ियों को तोड़ा और आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ते खोल दिए। फातिमा बीबी को 1989 में सुप्रीम कोर्ट की जज नियुक्त किया गया। इससे पहले उन्हें साल 1983 में केरल हाईकोर्ट में जज के पद पर नियुक्त किया गया था। जहां उन्होंने 6 साल यानी 1989 तक अपनी सेवाएं दी। हाई कोर्ट के जज़ के पद से रिटायर होने के महज 6 महीने बाद ही उन्हें 1989 में सुप्रीम कोर्ट का जज़ के रुप में नियुक्त किया गया। इसे इतिहास में एक सुनहरा पल मान सकते हैं क्योंकि किसी महिला को सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने में लगभग 4 दशक का समय लग गया।
फातिमा बीबी के बारे में
फातिमा बीबी का जन्म 30 अप्रैल, 1927 में केरल के पत्तनम्तिट्टा में हुआ, उनके पिता मीरा साहिब और मां का नाम खदीजा बीबी है। फातिमा बीबी की शुरुआती शिक्षा पत्तनम्तिट्टा के ही कैथीलोकेट स्कूल में हुई जिसके बाद उन्होंने त्रिवेंद्रम लॉ कॉलेज से कानून की पढाई पूरी की।
फातिमा पढ़ाई में हमेशा से ही मेधावी रही थीं। उन्होंने साल 1950 में भारत के बार काउंसिल की परीक्षा में टॉप किया। तब वे उस परीक्षा में टॉप करने वाली पहली महिला थीं। उसी साल नवंबर के महीने में फातिमा ने वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया और केरल की सबसे निचली न्यायपालिका से अपनी प्रैक्टिस की शुरूआत की। सुप्रीम कोर्ट की जज बनने से पहले फातिमा बीबी ने न्यायिक सेवाओं में अपनी जिम्मेदारी निभाई। वहीं सुप्रीम कोर्ट के जज से रिटायर होने के बाद भी फातिमा बीबी ने तमिलनाडु की गवर्नर का कार्यभार संभाला।
वर्तमान में महिला न्यायधीश
फातीमा बीबी ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान न्यायतंत्र के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को लेकर कहा था,”बार और बेंच, दोनों ही क्षेत्रों में अब बहुत सी महिलाएं आ रही हैं। लेकिन फिर भी उनकी भागीदारी कम है। उनका प्रतिनिधित्व पुरुषों के बराबर अब भी नहीं है।