गोंड कला को अगर भारत का गहना कहें तो ये बात सही ही लगेगी। आदिम काल मध्यप्रदेश की जनजाति इस कला को संभाले हुए है। गोंड कला को ज्यादातर लोगों ने सिर्फ पेंटिंग्स, बॉल पेंटिंग्स के बाद कपड़ों पर ही देखा होगा। लेकिन यहां के कलाकार अब गोंड कला को नई ऊंचाई दे रहे हैं। दरअसल डिंडौरी जिले के कोल कलाकार अब अपनी कला से जूतों को रचनात्मक रूप दे रहे हैं। डिजाइनर दुनिया के इस दौर में गोंड चित्रकला से जूते सजाए जा रहे हैं जो बड़े ब्रांडेड कंपनियों के जूतों के जैसे ही अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं।
गोंड कला से सजे जूतों की हो रही है दुनियाभर में मांग
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के आदिवासी कस्बे में 161 गोंड लोक कलाकार इस कला को जूतों में उकेर रहे हैं। यही नहीं ये कलाकार अपनी कला से अपने लिए आय के नए साधन भी सृजन कर रहे हैं। खास बात ये है कि अब इन जूतों की मांग सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने में हो रही है। विदेशों से भी इनकी कलाकारी के लिए कई प्रोडक्ट्स के ऑर्डर मिल चुके हैं।
गोंड कलाकारी की पहुंच विदेशों तक
ये कलाकार देश के बड़े शहरों में एकजुट होकर अपने काम को सभी जगह पहुंचा रहे हैं। इनकी कला सिर्फ कैनवास की पेंटिंग तक ही सीमित नहीं रह गई है बल्कि दरवाजे, खिड़कियां, अलमारी, सेंटर टेबल टॉप, कॉस्टर या फिर किसी घर के फर्नीचर तक को रंग रही है। ये आदिवासी लोककला से परिपूर्ण हैं और अब अपनी कला का लोहा पूरी दुनिया में मनवा रहे हैं।
इंटरनेट की मदद से कर रहे हैं खुद की ब्रांडिंग
ये कलाकार अपनी कला को देश-दुनिया तक पहुंचाने के लिए तकनीक का सहारा ले रहे हैं। विदेशों से मिलने वाले ऑर्डर और उनसे फीडबैक और पेमेंट लेने के लिए ये कलाकार किसी बिचौलिये पर आश्रित नहीं हैं बल्कि ये खुद इंटरनेट की मदद से अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं।