सांस्कृतिक रूप से भारत हमेशा काफी समृद्ध रहा है, यहां की कला और संस्कृति किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यहां पर उपजी कलाओं की चर्चा दुनियाभर में है। ऐसी ही कलाओं में से एक है कांथा एम्ब्रायडरी। हाथों से बुनी जाने वाली इस कला का जन्म पश्चिम बंगाल में हुआ। अपनी खूबसूरती के चलते ये सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि देश भर में लोकप्रिय है। कांथा वर्क बंगाल की महिलाओं की प्रतिभा और कौशल का एक शानदार उदाहरण है। इस एंब्रॉयडरी में जो सिलाई की जाती है उसे ‘रनिंग स्टिच’ कहा जाता है।
कांथा का इतिहास
कांथा की कहानी पौराणिक कथाओं से जुड़ी है, कहते हैं कि भगवान बुद्ध के शिष्यों ने रात में खुद को ढकने के लिए विभिन्न प्रकार के पैच वर्क के साथ पुराने चिथड़ों का इस्तेमाल किया करते थे। कपड़ों के साथ किया जाने वाला यह प्रयोग कांथा कढ़ाई कहलाया। कांथा की एक और खासियत है, ऐसा कहा जाता है कि कांथा में बनाई गई कला ग्रामीण महिलाओं के मन की रचना का भी जरिया है। इस कला के माध्यम से महिलाएं अपने स्वतंत्र मन की रचनाओं को कांथा के जरिए कपड़ों पर बुनती थीं। इसमें बनीं मछलियां, हाथी, ग्रामीण परिवेश, कमल सभी स्त्रियों के मन की रचनाओं के रंग होते थे।
पर्यावरण संरक्षण का भी बेहतरीन उदाहरण
जलवायु परिवर्तन इस दौर की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इसके लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से हमें दूर रहना चाहिए। ये हम सभी ने सुना और जाना होगा। जिसके लिए रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के अलावा कपड़ों के भी रीयूज की बात की जाती है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज से करीब कई साल पहले कांथा वर्क के जरिए लोग कपड़ों को रियूज किया करते थे। ऐसा कर कांथा के जरिए स्वत: ही पर्यावरण संरक्षण का कार्य किया जाता था।
नए जनरेशन के साथ कदम मिला रही है कांथा कला
कांथा वो कला है जिसने हर जनरेशन को एडॉप्ट किया, जहां कांथा कई सौ साल पहले कला एक समृद्ध रूप थी वहीं आज भी 21वीं सदी में कांथा नए जनरेशन के साथ-साथ चल रही है। इस कला की खूबसूरती इसकी बनावट में ही है, बड़े-बड़े फैशन एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह अपने आप में एक बेहतरीन एक्सेसरी है और इसे बेहतर दिखाने के लिए एक्स्ट्रा एक्सेसरीज की जरूरत नहीं होती है। आज कांथा एम्ब्रायडरी वर्क पूरी दुनिया में एक अलग पहचान रखती है, देश-विदेशों तक इसकी मांग है, फैब्रिक इंडस्ट्री को कांथा वर्क ने एक अलग मुकाम दिया है। कांथा सिर्फ एक कला नहीं है बल्कि भारतीय कला के रंगों का एक समृद्ध इतिहास, विविधता और गौरव है।