

Tree Transplant: ऊंची इमारतें, बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर, चौड़ी सड़कें और विस्तार होती रेला लाइनें ये सभी एक विकसित देश की रूपरेखा तय करती हैं। लेकिन इनके निर्माण में कई बार घने पेड़ों को काटना पड़ता है। पर अगर ऐसा न हो तो, यानी कि डेवलपमेंट का काम भी होता रहे और पेड़ों का जीवन भी नष्ट न हो। ऐसा किया जा सकता है। ट्री ट्रांसप्लांट तकनीक को अपनाकर। इसे इस तरह से समझते हैं….
साल 2018 में दिल्ली में बसी कई सरकारी कालोनियों को तोड़कर उन्हें फिर से डेवलप किया गया। इसकी वजह से कई पेड़ों को काटना था। लेकिन सरकार ने इन पेड़ों को मरने नहीं दिया। सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक इन पेड़ों को काटने के बावजूद ग्रीन कवरेज को बढ़ाकर 3 गुना करने का प्रयास किया गया। जिसके लिए इन कालोनियों के 1213 पेड़ों का ट्रांस्प्लांट किया गया। यानी कि जो हरे-भरे और पुराने पेड़ थे उन्हें काटने की बजाय दूसरी जगह पर शिफ्ट कर दिया गया।
क्या है ट्री ट्रांसप्लांट की टेक्नीक?
कृषि और बागवानी में, ट्रांस्प्लांट बिना पौधो को नुकसान पहुंचाए उसे जड़ सहित एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करना है। एक युवा पेड़ की ट्रांस्प्लांट लागत 2,000 रुपए और पुराने और बड़े पेड़ को ट्रांस्प्लांट करने में 10,000 रुपए से लगभग 70,000 रुपए तक का खर्च आता है। हालांकि, ट्रांस्प्लांट के बाद देखभाल बहुत ही महत्वपूर्ण है।
पेड़ ट्रांस्प्लांट करने के लिए अच्छा समय
पेड़ों और झाड़ियों को स्थानांतरित करने के लिए समय का विशेष ध्यान देना बेहद जरूरी है। स्प्रिंग से पहले का समय आमतौर पर ट्रांस्प्लांट के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। तेजी से जड़ के विकास के लिए स्थितियों को बेहद आदर्श होना भी जरूरी है। खुदाई तब की जानी चाहिए जब मिट्टी में नमी हो और जब पौधे नमी के तनाव न हो रहा हो।
ट्रांस्प्लांट के दौरान ध्यान रखने वाली बातें
पेड़ों में जीवन होता है, संभवत: उनमें इमोशन भी होते हैं। जब ट्रांसप्लांट के लिए पेड़ों को जड़ों से उखाड़ा जाता है तो वे एक तरह के ट्रॉमा से गुजरते हैं, इसके लिए सबसे जरूरी बात है कि उन पेड़ों का ध्यान किसी घायल व्यक्ति की तरह की जानी चाहिए। हालांकि इसका अस्तित्व इसकी उम्र पर निर्भर करता है लेकिन ट्रांस्प्लांट के बाद 5 से 10 साल के वृक्षों की संख्या बढ़ने की संभावना होती है।
20 साल से अधिक उम्र के पेड़ नए पर्यावरण के साथ अनुकूलित होने समय लेते हैं। वर्षों से जमे पेड़ों से अच्छी वृद्धि और उपज की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। दूसरा रामीटर जो एक प्रत्यारोपित पेड़ के स्वास्थ्य को निर्धारित करते हैं उनमें जगह, मिट्टी का प्रकार, जड़ संरचना की प्रकृति, पेड़ और परिधि की प्रजातियां शामिल होती हैं।
ट्रांस्प्लांट के बाद, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जड़ें हमेशा पानी से गीली रहनी चाहिए। उर्वरकों, कीटनाशकों और यहां तक कि जैव-खाद भी लागू नहीं किया जाए जब तक कि जड़ों को नई मिट्टी में जगह न मिले और वे जम न जाएं।
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