जिस उम्र में लोग पूरी तरह से रिटायर हो जाते हैं, उस उम्र में कोई अगर समाज की बेहतरी के लिए काम करे तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। हम बात कर रहे हैं 93 साल की सुपर दादी की, जिनके प्रयासों से लोगों में प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल को बंद करने की जागरूकता आई है।
कतरन से 35000 थैलियां बनाकर मुफ्त में बाँट दी
हैदराबाद की मधुकान्ता भट्ट 93 साल की हैं, वे रोज अखबार पढ़ती हैं, क्रिकेट देखती हैं, पुराने गीत, भजन गाती हैं और सिलाई-बुनाई का काम भी करती हैं। कुलमिलाकर वे एक सुपरकूल पर्सनालिटी हैं। उन्हें देखकर कोई आश्चर्य हो सकता है कि इस उम्र में भी वे कैसे इतनी एक्टिव हैं। इन सभी में एक बात उन्हें और भी खास बना देती है। दरअसल मधुकान्ता जी बेकार कपड़ों और कतरन से थैलियां सिलकर लोगों को फ्री में बांट देती हैं। इससे लोगों में प्लास्टिक के उपयोग में कमी आई हैं। वे एक प्रेरणा हैं कि अगर इस उम्र में वे पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझकर इतनी मेहनत कर रही हैं तो बाकी लोग तो कर ही सकते हैं। अभी तक उन्होंने लगभग 35 हजार से ज्यादा थैलियां बांट दी हैं।
दादी में और भी है खास बात
वे कहती हैं कि वे बचपन से ही हमेशा एक्टिव रही हैं। उन्हें कभी खाली बैठना पसंद नहीं आया। एक बार जब उन्हें समय मिला तो उन्होंने मशीन रिपेयरिंग का एक छोटा सा कोर्स कर लिया। ताकि अगर कभी मशीन ख़राब हो जाएं तो वह इसे झट से ठीक कर सकें। कुछ समय पहले उनका पैर फिसल गया और वो गिर गईं थी। जिसके बाद भी उन्होंने बैठकर काम करना शुरू किया। यही से उन्हें थैलियां बनाकर बांटने का ख्याल आया।
इस काम के लिए उनके एक व्यापारी मित्र उन्हें मदद करते हैं, उन्हें चादरों के टुकड़े और दर्जी के पास से कपड़ों की कतरन लाकर वही देते हैं। वे सिर्फ सिलाई ही नहीं करती हैं बल्कि पूजा के लिए रूई की बत्तियां भी बनाकर लोगों में बांट देती हैं। कोरोना के समय भी उन्होंने मास्क बनाकर लोगों को फ्री में बांटा था।
उनके इस काम में उनके बेटे नरेश उनका साथ देते हैं। 93 साल की उम्र में भी लोग उन्हें सिलाई मशीन पर बैठे देखकर आश्चर्य करते हैं। लेकिन मधुकान्ता लोगों को ये संदेश दे रही हैं कि वे कभी भी रिटायर नहीं होंगी और हमेशा काम
करती रहेंगी। वे अपने काम से लोगों की प्रेरणा बन रही हैं।