हर सफलता की अपनी एक कहानी होती है। कोई कहानी जिंदगी बदल देती है तो कोई प्रेरणा का सृजन करता है। ऐसी ही एक कहानी है, बिहार के सीतामढ़ी जिले के नरेंद्र कुमार की। 19 साल के नरेंद्र उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो अपने जीवन से अंधकार को खत्म करना चाहते हैं।
नरेंद्र की कहानी…
जयपुर यूनिवर्सिटी के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक कर रहे नरेंद्र को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि सामान्य छात्रों की तरह ही वे भी भविष्य के सपनों को संजोते एक युवा हैं। लेकिन उनकी कहानी संघर्षों और प्रेरणा से भरी हुई है। दरअसल नरेंद्र कभी ह्यूमन ट्रैफिकिंग या मानव दुर्व्याउपार जैसे घृणित कार्य के विक्टिम थे। नरेंद्र अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं ” मैं जब सिर्फ 10 साल का था, तब मुझे अच्छे पैसे व काम का लालच देकर नेपाल ले जाया गया, मेरी भी मजबूरी थी। मैं परिवार के पालन पोषण के लिए कुछ पैसे कमाना चाहता था, लेकिन यहां पहुंचते ही मेरे सारे सपने टूट गए। मुझे एक होटल के काम में झोंका गया। यहां रोजाना अमानवीय परिस्थितियों में 12 घंटे से भी ज्याझदा काम मैं करता था। खाने के नाम पर बचा हुआ खाना मिलता था और पैसे भी एकदम नाममात्र।” वे भावुक होते हुए याद करते हैं, कि होटल मालिक उन्हें गालियां देता रहता था और पीटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता था।
नरेंद्र अपने साक्षात्कार में कहते हैं कि एक बार उनसे पेंट का डिब्बात गिर गया और इसके बाद होटल मालिक ने उन्हेंर बहुत बुरी तरह से मारा था। यही नरेंद्र के जीवन का टर्निंग प्वाइंट था। उन्होंने ये तय किया कि वे किसी भी तरह से वहां से निकलेंगे।
उनकी राह आसान नहीं थी। कहते हैं जहां उम्मीयद हो, वहां करिश्मा् हो ही जाता है। नोबेल शांति पुरस्कातर विजेता कैलाश सत्याार्थी के संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के कार्यकर्ताओं की छापेमारी में नरेंद्र समेत कई बच्चोंक को इस नारकीय जीवन से मुक्ति दिलाई गई। इसके बाद नरेंद्र को उनके घर सीतामढ़ी वापस भेज दिया गया। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी जिसकी वजह से वो अपनी पढ़ाई शुरू नहीं कर सकते थे।
बाल आश्रम ने बदली नरेंद्र की जिंदगी
एक प्रसिद्ध कहावत है “जहां चाह है वहां राह है” नरेंद्र भी पढ़ना चाहते थे इसलिए उन्हें मौका भी मिला। जयपुर स्थित बाल आश्रम का उन्हें सहारा मिला। ये आश्रम एक ऐसा स्थानन है जहां बालश्रम, बंधुआ मजदूरी और ट्रैफिकिंग से बचाए गए बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी ली जाती है। बाल आश्रम में ही बच्चों के पढ़ने-लिखने, रहने व खेलने-कूदने की व्यचवस्थां है। साथ ही कई तरह के ट्रेनिंग कोर्स भी हैं, जिन्हें पूरा कर बच्चे स्वावलंबी बनते हैं।
आज इंजीनियरिंग कर रहे हैं नरेंद्र
नरेंद्र की जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया। वह कहते हैं, बाल आश्रम में एक इलेक्ट्रिक ट्रेनिंग सेंटर है, जहां उन्होंेने कई इलेक्ट्रिक टूल्से और यूनिट्स के बारे में जानकारी हासिल की। बहुत कुछ सीखा और यहीं से उन्हें इंजीनियरिंग की तरफ अपने रुझान के बारे में पता चला। नरेंद्र ने 12वीं की पढ़ाई साइंस से की और इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया। नरेंद्र नियमित पढ़ाई के अलावा दूसरी चीजों में भी रुचि लेते हैं, जैसे कि डांस और ड्रामा। आगे चलकर नरेंद्र सामाजिक सेवाओं से जुड़कर अपने जैसे और भी लोगों की मदद करना चाहते हैं। नरेंद्र एक प्रेरणा हैं जो हर उस युवा को प्रभावित करेगी जो दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं।