लाफागढ़ (चैतुरगढ़): प्रकृति ने बनाया किला, इतिहास–रोमांच और रहस्य का अद्भुत संगम
क्या आपने कभी ऐसा किला देखा है जिसे इंसानों ने नहीं बल्कि प्रकृति ने खुद बनाया हो? एक ऐसी जगह जो इतिहास, रोमांच, रहस्य और प्राकृतिक सुंदरता से भरी हो? अगर नहीं, तो छत्तीसगढ़ के 36 किलों में शामिल चैतुरगढ़, जिसे स्थानीय लोग लाफागढ़ कहते हैं, आपके लिए एक परफेक्ट जगह है। कोरबा से लगभग 70 किलोमीटर दूर और समुद्र तल से करीब 3,060 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह किला सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच गर्व से खड़ा है।
लाफागढ़ को छत्तीसगढ़ का ‘कश्मीर’ कहा जाता है, और इसके पीछे कई कारण हैं—ठंडा मौसम, घने जंगल, ऊँची पहाड़ियाँ और पहाड़ों के बीच छिपा प्राकृतिक किला।
प्राकृतिक सुरक्षा से घिरा भारत का सबसे मजबूत किला
चैतुरगढ़ को सिर्फ किला कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह पूरी तरह प्राकृतिक सुरक्षा से घिरा हुआ है।
यह लगभग 5 वर्ग किलोमीटर के विशाल पठार पर स्थित है।
इसके चारों ओर 200–300 फीट गहरी प्राकृतिक खाइयाँ इसे अभेद्य बनाती हैं।
केवल कुछ स्थानों पर ही कृत्रिम दीवारें बनाई गई थीं।
इसी वजह से पुरातत्वविद इसे भारत का सबसे मजबूत प्राकृतिक किला मानते हैं।
कलचुरी राजवंश की छाप, तीन भव्य द्वार
यह किला 10वीं शताब्दी में विकसित होना शुरू हुआ और 11वीं–12वीं शताब्दी में कलचुरी राजा पृथ्वीदेव प्रथम ने इसे भव्य रूप दिया।
किले के तीन प्रमुख दरवाज़े
- मेनका द्वार
- हुमकारा द्वार
- सिंहद्वार
ये द्वार सुरक्षा के साथ-साथ कला और संस्कृति का उदाहरण हैं। इनमें स्तंभयुक्त मंडप, पुरातन शिल्प और उस युग की विशिष्ट वास्तुकला आज भी दिखाई देती है।
महिषासुर मर्दिनी मंदिर
इस किले का सबसे पवित्र स्थान है महिषासुर मर्दिनी मंदिर, जहाँ देवी की 12 हाथों वाली प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है। इतिहास बताता है कि 7वीं शताब्दी में वाण वंश के राजा मल्लदेव ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। यह स्थान धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है।
ऊँचाई पर जीवन कैसे संभव हुआ?
इतने ऊँचे पठार पर मानव बसाहट संभव थी, क्योंकि यहाँ अद्भुत जल प्रबंधन प्रणाली थी।
- किले के शीर्ष पर आज भी पाँच तालाब मौजूद हैं।
- इनमें से तीन तालाब पूरे साल पानी से भरे रहते हैं।
ये जलाशय प्राचीन इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट उदाहरण हैं और दर्शाते हैं कि कैसे एक बड़ा सैन्य ठिकाना यहाँ चल पाता था।
मुग़ल काल में भी रहा महत्वपूर्ण सैन्य केंद्र
- चैतुरगढ़ सिर्फ स्थानीय शासकों के लिए नहीं, बल्कि बड़े साम्राज्यों के लिए भी रणनीतिक स्थान था।
- गोंड राजा संग्राम शाह के लिए यह बावन गढ़ों में से एक प्रमुख किला था।
- 1571 ईस्वी में यह किला मुग़ल सम्राट अकबर के कब्जे में आया।
- 1628 ईस्वी तक मुग़ल सेना यहाँ तैनात रही
- यह साबित करता है कि चैतुरगढ़ उस समय की राजनीति और युद्धनीति का केंद्र था।
रोमांच से भरी शंकर गुफा
- अगर आप एडवेंचर के शौकीन हैं, तो लाफागढ़ की शंकर गुफा जरूर जाएँ।
- 25 फीट लंबी, सुरंग जैसी यह गुफा बेहद संकरी है।
- प्रवेश पाने के लिए आपको रेंगकर अंदर जाना पड़ता है।
- यह अनुभव आपको एक अलग ही रोमांच का एहसास करवाएगा।
कश्मीर जैसा मौसम और बहते झरने
सर्दियों में यहाँ की ठंड किसी पहाड़ी राज्य की तरह महसूस होती है, इसलिए लोग इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहते हैं। पास में स्थित चामादहरा और श्रृंगी झरने ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए खास आकर्षण हैं। यहीं से जटाशंकरी नदी का उद्गम होता है, जो हसदेव नदी की सहायक है। इसी नदी के तट पर कलचुरी वंश की प्रारंभिक राजधानी तुम्माण खोल हुआ करती थी।
आज का चैतुरगढ़
आज चैतुरगढ़ ईको-टूरिज्म का प्रमुख केंद्र है।
- घने जंगल
- दुर्लभ जानवर
- पक्षियों की कई प्रजातियाँ
- शांत वातावरण
यह सब इसे घूमने वालों के लिए एक सपनों की जगह बनाते हैं। नवरात्रि में यहाँ विशेष पूजा होती है, और सालभर यह स्थान यात्रियों को रोमांच का अलग अनुभव देता है।

