Bastar Fish Farming: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में पिछले 25 वर्षों में मछली पालन ने विकास की एक नई मिसाल पेश की है। जहां कभी यह क्षेत्र मछली उत्पादन में कमजोर माना जाता था, वहीं आज बस्तर नीली क्रांति (Blue Revolution) का बेहतरीन उदाहरण बन चुका है। राज्य निर्माण से लेकर अब तक मछली उत्पादन में लगभग 8 गुना वृद्धि हुई है, जो कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को एक मजबूत दिशा दे रही है।
मछली उत्पादन में ऐतिहासिक छलांग
Bastar Fish Farming
बस्तर में मछली उत्पादन 574 मीट्रिक टन से बढ़कर 16,000 मीट्रिक टन से अधिक हो गया है। इसी तरह मत्स्य बीज उत्पादन भी 149 लाख फिंगरलिंग्स से बढ़कर 728 लाख फिंगरलिंग्स तक पहुँच चुका है। ये आंकड़े बताते हैं कि जिले ने मछली पालन के क्षेत्र में किस गति से विकास किया है।
बढ़ा मछुआरों का आत्मविश्वास
राज्य सरकार द्वारा मछली पालन को कृषि का दर्जा देने के बाद मत्स्यपालकों को कई वित्तीय लाभ मिले हैं-
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) सुविधा
- 1 लाख रुपये तक का ब्याज-मुक्त ऋण
- 3 लाख रुपये तक सिर्फ 1% ब्याज पर ऋण
- बिजली और जलकर में रियायत
इन योजनाओं ने मछुआरों और किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है। आज बस्तर के 10,000 से अधिक मत्स्यपालक और किसान इससे लाभान्वित हो चुके हैं।
जलाशयों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी
बस्तर की मछली पालन सफलता की सबसे बड़ी वजह बढ़ते जल संसाधन हैं-
- ग्रामीण तालाब: 757 – 4852
- जलाशय: 30 – 33
- कुल जलक्षेत्र: 1316 हेक्टेयर – 3888 हेक्टेयर
- सक्रिय मछली पालन: 3796 हेक्टेयर (97%)
मत्स्यपालन विभाग ने पिछले पच्चीस सालों में 66 हेक्टेयर नए तालाब भी विकसित किए हैं। वर्ष 2000 में पट्टे पर दिए गए 301 तालाबों की संख्या बढ़कर अब 903 तालाब हो गई है।
मत्स्य बीज में आत्मनिर्भर जिला
- आज बस्तर न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि आसपास के कई जिलों-
- कोंडागांव, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और पड़ोसी राज्य ओडिशा को भी मत्स्य बीज की आपूर्ति कर रहा है।
- यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 3.20 मीट्रिक टन तक पहुंच चुकी है, जो बस्तर को राज्य के प्रमुख मत्स्य उत्पादन जिलों में शामिल करती है।
बायोफ्लॉक और झींगा पालन का विस्तार
आधुनिक तकनीकों ने बस्तर की मत्स्य क्रांति को और गति दी है-
- निजी किसानों द्वारा 13 बायोफ्लॉक यूनिट्स
- एक नई इकाई चालू, 3 निर्माणाधीन
- झींगा पालन के लिए 28 हेक्टेयर चयनित
- कोसारटेडा जलाशय में 96 केज स्थापित
- कई किसान इन तकनीकों से अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं।
- सहकारी समितियाँ बनीं मछुआरों की ताकत
- जिले में सहकारी समितियों की संख्या 19 से बढ़कर 37 हो गई है।
ये समितियाँ, केज कल्चर, मत्स्य बीज वितरण, तकनीकी प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता जैसी सेवाएँ प्रदान कर रही हैं।
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लैंडलॉक क्षेत्र में संभव हुआ ‘नीला चमत्कार’
समुद्र या बड़े नदीतंत्र से दूर होने के बावजूद, बस्तर ने अपनी जमीन पर तालाब बनाकर यह सिद्ध किया है कि इच्छाशक्ति और सरकारी सहयोग मिलकर किसी भी क्षेत्र में क्रांति ला सकते हैं। मत्स्यपालन विभाग के उप संचालक श्री मोहन राणा के अनुसार,
“सरकारी योजनाएँ और किसानों की मेहनत मिलकर बस्तर को मत्स्यपालन का मजबूत केंद्र बना रही हैं।” निस्संदेह, यह बस्तर में नीली क्रांति का सशक्त आगाज़ है।
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