Naxal Surrender: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के इतिहास का नया अध्याय लिखा गया है। वर्षों से आतंक और हिंसा की राह पर चलने वाले सैकड़ों नक्सलियों ने अब शांति, संविधान और विकास की राह पकड़ ली है। बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर में 210 नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया और हाथों में भारतीय संविधान की प्रति और लाल गुलाब लेकर अहिंसा और लोकतंत्र की शपथ ली।
देश का सबसे बड़ा नक्सली सरेंडर
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस ऐतिहासिक घटना को देश का अब तक का सबसे बड़ा नक्सली सरेंडर बताया। दशकों से हिंसा और बंदूक की राजनीति का प्रतीक बने ये नक्सली अब मुख्यधारा में शामिल होकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहते हैं।
सरकार के मुताबिक, सरेंडर करने वाले नक्सलियों ने 153 घातक हथियार जमीन पर रख दिए। इनमें आधुनिक राइफल्स, विस्फोटक और भारी गोला-बारूद शामिल था।
देश से मिटेगा नक्सलवाद का नामो-निशान
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है। इसके तहत लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह सरकार के लिए एक बड़ी सफलता है कि कभी नक्सलवाद के गढ़ रहे अबूझमाड़ और उत्तर बस्तर को आज नक्सली मुक्त क्षेत्र घोषित किया जा चुका है।
उन्होंने कहा,
“अब केवल दक्षिण बस्तर के कुछ इलाकों में ही नक्सली सक्रिय हैं, जिन्हें हमारे सुरक्षा बल बहुत जल्द समाप्त कर देंगे।”
आंकड़ों में नक्सलवाद की गिरावट
अमित शाह के अनुसार, जनवरी 2024 में भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक 2100 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, 1785 गिरफ्तार किए गए हैं, और 477 मारे गए हैं। इससे पहले भी, छत्तीसगढ़ में 27 और महाराष्ट्र में 61 नक्सलियों ने हथियार डाले थे। यह साफ संकेत है कि नक्सल आंदोलन अब अपने अंतिम चरण में है।
लाल आतंक से लाल गुलाब तक का सफर
कभी लाल झंडे और बंदूक के प्रतीक रहे नक्सल अब लाल गुलाब और संविधान के जरिए नए भारत का हिस्सा बनने का संदेश दे रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ एक आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि एक नई सोच और उम्मीद की शुरुआत है।
अहिंसा और विकास की ओर नया कदम
नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार अब विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर फोकस कर रही है ताकि हिंसा की जड़ें फिर से न पनपें। प्रशासन का मानना है कि न्याय, समान अवसर और संवाद ही स्थायी शांति का रास्ता हैं।
Positive Takeaway
छत्तीसगढ़ में हुआ यह ऐतिहासिक सरेंडर न सिर्फ नक्सलियों के लिए एक नई शुरुआत है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि बंदूक से ज्यादा ताकत संविधान और लोकतंत्र में है। लाल आतंक का ख्वाब अब टूट चुका है, और देश एक शांतिपूर्ण व समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ रहा है।