माझी ‘द माउंटेन मैन’ तो सभी जानते हैं लेकिन झारखंड के पश्चिम सिंहभूम के कुमरिता गांव में रहने वाले चुम्बरू तामसोय को शायद ही कोई जानता होगा। मांझी ने सड़क बनाने के लिए पहाड़ काट दिया तो चुम्बरू तामसोय ने जल संकट से निपटने अकेले ही एक तालाब खोद डाला। चुम्बरू ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके गांव के लोग कई सालों से पानी की गंभीर संकट से जूझ रहे थे।
झारखंड राज्य के चुम्बरू तामसोय ने अकेले ही 100 गुणा 100 फीट वाला 20 फीट गहरा तालाब खोद डाला। उन्होंने न कभी सरकारी मदद की चाहत रखी और न किसी और से सहायता की मांग रखी। आज उनके बनाए तालाब से पूरे गांव के पानी की जरूरतें पूरी हो रही है। 72 साल के इस बुजुर्ग ने अपनी पूरी उम्र इस तालाब की खुदाई और उसके विस्तार में लगा दी। उम्र की वजह से भले ही वे कमजोर और बूढ़े दिखते हों लेकिन उनके हौसले से आज जल और जंगल दोनों का संरक्षण हो रहा हैा। उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रकृति के लिए समर्पित कर दिया ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा।
ज़िद और जुनून के 45 साल
चुम्बरू तामसोय अपने गांव में जल संकट को लेकर बेहद व्यथित थे। उन्होंने पहले तो कई प्रयास किए कि कहीं से तालाब निर्माण के लिए सहायता मिल जाए ताकि गांव वालों की समस्या खत्म हो, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी। वे जानते थे इंतजार करना यानी की परेशानी के साथ जीवन को व्यर्थ करना। उन्होंने अकेले ही अपने सफर की शुरूआत की।
वे खेती-बाड़ी के साथ हर रोज चार-पांच घंटे का वक्त निकालकर तालाब के लिए मिट्टी खुदाई करने के काम करने लगे। वे बताते हैं कि अगर किसी रोज दिन में समय नहीं मिला तो रात में ढिबरी जलाकर खुदाई करते थे। गांव के लोग हंसते और उन्हें मूर्ख कहा करते थे।
परिवार ने छोड़ा साथ
तालाब खोदने का जुनून उनके सिर पर सवार था। फिर चाहे उनका कोई साथ देता या नहीं। घर वालों ने उनके जुनून को पागलपन समझा और उनका साथ छोड़ दिया। एक अखबार में उनके साक्षात्कार के अनुसार उनके काम से परेशान होकर उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले लिया। चुम्बरू आहत हुए, लेकिन उन्होंने तालाब खुदाई के काम को नहीं छोड़ा। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और बरसात का पानी उनके तालाब में जमा होने लगा। उनके मेहनत से तैयार तालाब के पानी से लोगों को बागवानी और खेती में मदद मिलने लगी।
चुम्बरू इसी तालाब की बदौलत लगभग पांच एकड़ भूमि पर आज खेती करते हैं। उन्होंने पचास-साठ पेड़ों की बागवानी भी डेवलप की है। जहां उन्होंने आम, अर्जुन, नीम और साल के पेड़-पौधे लगाए हैं। तालाब के पानी का उपयोग गांव के दूसरे किसान भी खेती से लेकर नहाने-धोने के लिए इस्तेमाल में लाते हैं। उनके क्षेत्र में पूरे साल में केवल धान की ही खेती होती थी लेकिन अब उनके तालाब के पानी से आस-पास के किसान अपने खेतों में टमाटर, गोभी, हरी मिर्च, धनिया आदि की भी खेती कर रहे हैं।
2017 में रांची में मत्स्य विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उन्हें उनके काम के लिए सम्मानित किया गया।