ये कहानी है गुजरात के शंखेश्वर इलाके की, जिसे बंजर जमीन और कम वर्षा होने की वजह से मिनी रण यानी कि सबसे सूखा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यहां पेड़-पौधे और पक्षी कम ही नजर आते थे। लेकिन ये बात कुछ सालों पहले की है। यहां आज तस्वीर बदल चुकी है और इस बदलाव के पीछे है एक खास जोड़ा जिन्होंने अपने जीवन के 25 साल जैव-विविधता यानी कि पेड़-पौधे, पक्षी, पानी और पर्यावरण के लिए समर्पित कर दिए। दरअसल इस गांव में एक शिक्षक कपल रहते हैं। उन्होंने 25 साल की मेहनत से गांव में ‘निसर्ग निकेतन’ तैयार किया है।
क्या है पूरी कहानी?
दिनेशचंद्र ठाकर और उनकी पत्नी देविंद्रा ठाकर प्रकृति प्रेमी के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। उनके निरन्त प्रयासों से आज दूर-दूर से लोग निसर्ग निकेतन में पक्षी और हरियाली देखने पहुंचते हैं। इस बदलाव की शुरुआत साल 1999 में हुई जब शिक्षक दिनेश चंद्र और उनकी पत्नी देविंद्रा बेन प्रकृति के लिए काम करना शुरू किया। वे कहते हैं कि उन्होंने 1984 के अकाल का दौर देखा जब बहुत सारे पक्षी मर रहे थे। उनके मन में संवेदना जागृत हुई और उन्होंने प्रकृति के लिए कुछ करने की ठानी। उन्होंने निश्चय किया कि इन पक्षियों के लिए कुछ करना होगा क्योंकि बिना पक्षियों के सृष्टि, सृष्टि ही नहीं रहेगी।
शुरू की प्रकृति सेवा
दिनेशचंद्र ठाकर और उनकी पत्नी देविंद्रा ठाकर ने रिटायर होने के पहले ही फैसला किया कि शहर की जगह गांव में लौटकर फिर से देसी पेड़ों और पक्षियों के संरक्षण के लिए काम किया जाए। इसी सोच के साथ उन्होंने धनोरा गांव में तीन एकड़ जमीन खरीदकर थोड़े-थोड़े पौधे लगाने का काम शुरू किया। उन्होंने एक बंजर इलाके के लुप्त हो चुके बेर, इमली और कचनार जैसे पौधों को फिर से हरा-भरा किया। वे खुद ही एक झोपड़ी बनाकर मिट्टी की सिंचाई करते और पौधे लगाते थे।
जैसे-जैसे पौधे बढ़ने लगे, वैसे-वैसे पक्षियों का बसेरा फिर से होने लगा। आज की स्थिति है कि यह पूरा इलाका करीबन 200 किस्मों के 6000 पेड़ों से भरा है। जिसमें मोर, तोता, बुलबुल, चिड़िया सहित कई किस्मों के सैकड़ों पक्षी नजर आते हैं।
दोनों मिलकर पक्षियों और पेड़ों का ख्याल रखते हैं। पक्षियों के लिए हर दिन 100 किलो अनाज और पानी की व्यवस्था करते हैं। पक्षियों के संरक्षण के लिए उन्होंने निसर्ग सेवा ट्रस्ट नाम से एक संस्था की शुरूआत की है। जिसके ज़रिए वह पूरे गांव को हरा-भरा बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
निसर्ग निकेतन की तर्ज पर ही उन्होंने गांव में ऐसे ही और 10 जंगल बनाने की दिशा में काम की शुरूआत की है। प्रकृति के लिए उनका ये प्रयास हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत बन चुका है।