गन्ने (Sugarcane) के वेस्ट को अक्सर डिस्पोज करने में काफी परेशानी होती है। कई छोटे किसान कुछ साल पहले तक इसे जला देते थे लेकिन हाल ही में पराली (crop waste) को जलाने से रोकने के लिए नियम कानून बनाए गए जिससे वायु प्रदूषण को रोका जा सके। ऐसे में गन्ने के वेस्ट को डिस्पोज करना एक बड़ी समस्या थी।
हाल ही में बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी और अल्ट्रासोनिक्स सोनोकेमिस्ट्री में पब्लिश एक रिसर्च में इसका हल दिखाई दिया है। दरअसल आईआईटी गुवाहाटी के कुछ रिसर्चर ने गन्ने के वेस्ट से ‘ज़ाइलिटोल’ नामक चीनी को डेवलप करने का तरीका निकाला है। जो शुगर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा।
Ultrasound-assisted fermentation method से बनेगी “Xylitol”
रिसर्चर्स ने गन्ने की पेराई के बाद बचे वेस्ट से ‘ज़ाइलिटोल’ नामक चीनी के सेफ ऑप्शन का प्रोडक्शन किया है। इसे शोधकर्ताओं ने अल्ट्रासाउंड-समर्थित किण्वन विधि (Ultrasound-assisted fermentation method) से डेवलप किया है।
रिसर्चर्स ने गन्ने की पेराई के बाद बचे वेस्ट से ‘ज़ाइलिटोल’ नामक चीनी के सेफ ऑप्शन का प्रोडक्शन किया है। इसे शोधकर्ताओं ने अल्ट्रासाउंड-समर्थित किण्वन विधि (Ultrasound-assisted fermentation method) से डेवलप किया है।
शुगर मरीजों के साथ-साथ शुगर के हेल्दी यूज के लिए ये चीना काफी मददगार साबित होगी। ‘ज़ाइलिटोल’ नेचुरल प्रोडक्ट से प्राप्त शुगर अल्कोहल है, जिसके संभावित रूप से एंटी-डायबिटिक और एंटी-ओबेसोजेनिक प्रभाव दिखाई देंगे। रिसर्चर्स का कहना है कि ‘ज़ाइलिटोल’ एक हल्का प्री-बायोटिक है, ये डेंटल केरिज (Dental Caries) को रोकने में मदद करता है।
केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी गुवाहाटी से जुड़े इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता में से एक का कहना है कि “अल्ट्रासाउंड के इस्तेमाल से पारंपरिक प्रक्रियाओं में लगने वाला लगभग 48 घंटे का फरमंटेशन समय घटकर 15 घंटे हो गया है। इसके साथ-साथ उत्पाद में लगभग 20% की वृद्धि भी देखी गई है। फरमंटेशन के दौरान केवल 1.5 घंटे के अल्ट्रासोनिकेशन का इस्तेमाल हुआ है। यानी कि इसके प्रोसेस में ज्यादा अल्ट्रासाउंड पावर की यूज नहीं होगा। अल्ट्रासोनिक फरमंटेशन के इस्तेमाल से गन्ने के वेस्ट से ‘ज़ाइलिटोल’ प्रोडक्शन भारत में गन्ना उद्योगों के लिए संभावित अवसर होगा।