कुछ दिनों पहले एक प्रतिष्ठित वेबसाइट ने एक दृष्टिहीन व्यक्ति की कहानी पब्लिश की थी, जो कई लोगों की प्रेरणा बनीं। ये कहानी है कर्नाटक के 66 साल के दत्तू अग्रवाल की। जिन्होंने पिछले 17 सालों से सैकड़ों दृष्टिहीन लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है। दत्तू अग्रवाल तीन साल की उम्र से दृष्टिहीन हैं। बावजूद इसके उन्होंने ये साबित किया है कि संघर्ष भले ही कितना बड़ा क्यों न हो इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प से हर जंग जीती जा सकती है। उन्होंने अपनी मेहनत से न सिर्फ खुद का जीवन संवारा बल्कि आज कई बच्चियों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। दत्तू अग्रवाल ने जरूरतमंद बच्चियों को शिक्षा से जोड़ा है।
मां बनीं प्रेरणा
दत्तू ने अपने एक साक्षात्कार में बताया कि, इस काम को करने की प्रेरणा उन्हें अपनी माँ से मिली। वो कहते हैं कि आखों से न देख पाने के बावजूद भी उनकी माँ ने बड़ी मेहनत करके उन्हें पढ़ा-लिखाकर एक प्रोफेसर बनाया और आज वो जो भी अच्छा कर पा रहे हैं उसके पीछे उनकी मां का हाथ है। बचपन में उन्होंने देखा कि उनकी माँ ने उन पर काफी मेहनत की। अपनी मां की इसी मेहनत को देखकर वह हमेशा सोचते कि शायद हर एक दृष्टिहीन बच्चा उनके जैसा खुशकिस्मत नहीं होता है। सभी बच्चों को आगे बढ़ने के मौके नहीं मिलते इसलिए बचपन से ही उन्होंने ठान लिया था कि वह भी आगे चलकर अपने जैसे दूसरे जरूरतमंद लोगों की मदद जरूर करेंगे।
पत्नी की मदद से घर पर शुरू हुआ स्कूल
आज दत्तू जिस मुकाम पर पहुंचे हैं उसकी शुरुआत 17 साल पहले हुई थी। अपने रिटायरमेंट के कुछ साल पहले उन्होंने अपनी पत्नी की मदद से चार जरूरतमंद दृष्टिहीन लड़की को अपने घर पर रखा और उनकी शिक्षा और परवरिश की पूरी जिम्मेदारी उठाने का फैसला लिया। धीरे-धीरे, आस-पास के कई जरूरतमंद लोगों ने अपनी दृष्टिहीन बच्चियों को उनके पास पढ़ने भेजने लगे।
दत्तू खुद भी कई जगहों से ऐसी बच्चियों को खोजते और उनकी जिम्मेदारी उठाते। ऐसी बच्चियां जो स्कूल नहीं जाती थीं उन्हें वे अपने घर पर ही पढ़ाते थे। दत्तू कहते हैं कि आज भी लोगों में लड़कियों की शिक्षा के प्रति ज़्यादा बदलाव नहीं दिखाई देता है। ऐसे में अगर लड़की अगर देख न पाती हो तो उसे कोई नहीं पढ़ाता। इसलिए उन्होंने विशेष रूप से लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला। चार लड़कियों की संख्या जब बढ़कर 10 से ज्यादा हुई तब उन्होंने किराये पर एक मकान लेकर Matoshree Ambubai Residential School’ की शुरुआत की। बच्चियां यहां रहकर पढ़ाई करती हैं।
ये दत्तू की मेहनत का नतीजा है कि आज उनका यह स्कूल 75 दृष्टिहीन बच्चियों का घर है, जहां उनके सुनहरे कल का पुल बनाया जा रहा है। आज सैकड़ों लड़कियां यहां से पढ़कर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। दत्तू कहते हैं बच्चियों का सुनहरा भविष्य ही उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। वो लगातार काम कर रहे हैं और भविष्य में ज़्यादा से ज़्यादा दृष्टिहीन बच्चियों को शिक्षा और आसरा देने के लिए एक घर बनाने की चाह रखते हैं। दत्तू एक प्रेरणा हैं, उन्होंने अपनी अक्षमता की क्षमता में बदला और ऐसे लोगों के लिए खड़े हुए जो आज बेहतर समाज का हिस्सा बन चुके हैं। seepositive उनके जज्बे को सलाम करता है।