Bastar shiv mandir: बस्तर का भूपालेश्वर महादेव मंदिर, जो दलपत सागर के मध्य स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित है, न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह बस्तर के काकतीय चालुक्य राजवंश की स्थापत्य कला का भी अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है और यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मोटर बोट का सहारा लेना पड़ता है। महाशिवरात्रि के दिन यह मंदिर हजारों भक्तों से भरा होता है, जो भगवान शिव के दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं।
बस्तर के राजा भूपाल देव की श्रद्धा
मंदिर की स्थापना के पीछे एक गहरी पौराणिक कहानी है। लगभग 200 साल पहले, बस्तर के राजा भूपाल देव ने अपनी रानी वृंदकुंवर बघेलीन की प्रेरणा से दलपत सागर के मध्य भगवान शिव के एक मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर भूपाल देव के नाम पर “भूपालेश्वर महादेव” के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर उनकी परम श्रद्धा और भगवान शिव से पुत्र प्राप्ति की कामना से जुड़ा हुआ था।
दलपत सागर का इतिहास
राजा दलपत देव ने जगदलपुर की नींव रखी थी और यहां विशाल तालाब खुदवाया, जो बाद में दलपत सागर के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह तालाब राजा के नाम पर था और इसकी स्थापना से पहले बस्तर क्षेत्र में जलाशय का कोई प्रचलन नहीं था। उनके बाद, भूपाल देव ने इस तालाब के बीच मंदिर बनाने का निर्णय लिया, जो आज भी बस्तर के ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है।
शिवरात्रि को ही मिलती है दर्शन की अनुमति
महाशिवरात्रि के दिन, इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। पहले 1962 तक श्रद्धालुओं को डोंगी की सहायता से मंदिर तक पहुंचाया जाता था, लेकिन अब नगर निगम द्वारा मोटर बोट की व्यवस्था की जाती है। इस दिन यहां आने वाले भक्त भगवान शिव के दर्शन करते हुए इस ऐतिहासिक मंदिर के शिल्प और भव्यता को महसूस करते हैं।
मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य
भूपालेश्वर महादेव मंदिर की एक और खासियत यह है कि यह सागर के बीच स्थित एक हरे-भरे टापू पर है, जहां शाम होते ही विभिन्न प्रकार की पक्षियों की प्रजातियां निवास करती हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यहां के हरे-भरे पेड़ और शांत वातावरण को देखना एक अनोखा अनुभव होता है।
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विश्वास का अनोखा जुड़ाव
यह मंदिर बस्तर की संस्कृति और धर्म के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। महाशिवरात्रि पर भक्तों का तांता यहां लगता है, और उन्हें न केवल भगवान शिव के दर्शन का सौभाग्य मिलता है, बल्कि बस्तर की संस्कृति और इतिहास को भी जानने का अवसर मिलता है। यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है जो बस्तर के गौरव को दर्शाता है।