Birsa Munda: कौन हैं बिरसा मुंडा जिन्हें आदिवासी मानते हैं भगवान?

Birsa Munda: जब भी आदिवासी आंदोलनकारियों का जिक्र किया जाता है, “बिरसा मुंडा” (Birsa Munda)का नाम सबसे पहले याद किया जाता है। इसका कारण हैं आदिवारियों के हक लिए किया गया उनका संघर्ष। उनके द्वारा किए गए आंदोलनों और कोशिशों के परिणाम के स्वरूप ही आदिवासियों के लिए विशेष कानून बनाए गए। उनके सम्मान में हर साल  उनकी जयंती पर 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” मनाया जाता है। आइए जानते हैं बिरसा मुंडा के उन आंदोलनों के बारे में जिसने अंग्रेजों की नींद  उड़ा कर रख दी थी।

बिरसा मुंडा (Birsa Munda)का शुरुआती जीवन

धरती आबा के नाम से जाने जाने वाले  बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बिहार के गांव उलीहातू, जिला, रांची में हुआ था। बिरसा मुंडा ने अपनी शुरुआती शिक्षा  चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल से पूरी की। स्कूल के दिनों से ही उनके अंदर का क्रांतिकारी जागने लगा था। बाद में सरदारों के कहने पर बिरसा मुंडा को मिशन स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद उनके परिवार ने भी चाईबासा छोड़ दिया।

बिरसा मुंडा का मुख्य आंदोलन

आदिवासियो के हक के लिए बिरसा मुंडा (Birsa Munda)ने कई आंदोलन किए। उनके आंदोलनों में “उलगुलान आंदोलन” सबसे प्रमुख है। उलगुलान का मतलब होता है ‘महाविद्रोह’ इस आंदोलन की शुरुआत 1889 से 1900 के बीच सिंहभूम के संकरा गांव से की गई थी। इस आंदोलन के जरिए बिरसा मुंडा ने आदिवारियों को जल, जगंल और जमीन की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया।

क्या था उलगुलान आंदोलन का उद्देश्य?

उलगुलान आंदोलन अंग्रेजों, जमींदारी प्रथा, मिशनरियों और सामंती व्यवस्था के खिलाफ था। आंदोलन का मुख्य केंद्र खूंटी, सरवाडा और बंदगांव था। आंदोलन के जरिए आदर्श भूमि व्यवस्था को लागू करना मुख्य लक्ष्य रखा गया था। उलगुलान आंदोलन के तहत ही लगान माफी के लिए भी आंदोलन चलाए गए। आंदोलन से नाराज अंग्रेजों ने आदिवासियों से उनकी ही जमीन पर काम करने का हक छीन लिया और बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया।

बिरसा के नाम से डरते थे अंग्रेज

आदिवासी समाज में बिरसा मुंडा की पकड़ इतनी मजबूत थी कि उनके कहने पर सैकड़ों आदिवासी तीर-कमान लेकर अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने पहुंच जाते थे। अंग्रेजी सरकार भी बिरसा मुंडा के नाम से घबराने लगी थी। उलगुलान आंदोलन के बाद अंग्रेजी सरकार को पता चल गया था कि आदिवासियों की ताकत बिरसा मुंड ही है। उन्होंने बिरसा मुंडा को खत्म करने की योजना बना ली।

जेल में हुई बिरसा की मृत्यु

कुछ आदिवासी लोगों को लालच में लेकर अंग्रेजों ने बरिसा को सोते हुए उठवा लिया। उन्हें जेल में  डाल दिया गया और स्लो पॉइजन दिया जाने लगा।  धीरे-धीरे बिरसा मुंडा बिमार होते चले गए और 9 जून 1900 को उनकी मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने उनकी मौत को प्राकृतिक मृत्यु दिखाने की कोशिश की। लेकिन उनको मानने वालों को अंदेशा हो गया था कि उन्हें मारा गया है। बिरसा मुंडा की मृत्यु के बाद उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन और भी तेज हो गए और आगे चलकर उन्हीं की बदौलत आदिवासियों को उनका हक वापस मिला।

Avatar photo

Rishita Diwan

Content Writer

ALSO READ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Owner/Editor In Chief: Dr.Kirti Sisodia 

Office Address: D 133, near Ram Janki Temple, Sector 5, Jagriti Nagar, Devendra Nagar, Raipur, Chhattisgarh 492001

Mob. – 6232190022

Email – Hello@seepositive.in

FOLLOW US​

GET OUR POSITIVE STORIES

Uplifting stories, positive impact and updates delivered straight into your inbox.