Lakhni Devi Temple: छत्तीसगढ़ के रतनपुर-कोटा रोड पर इकबीरा पहाड़ी पर लखनी देवी का मंदिर स्थापित है। यह छत्तीसगढ़ में माता लक्ष्मी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को धन, वैभव, सुख, और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी का पवित्र स्थान माना जाता है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां माता की आराधना करने से दुख, गरीबी, रोग, और शोक दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
लखनी देवी मंदिर का इतिहास
माता लक्ष्मी के ही एक नाम लखनी पर इस मंदिर का नाम “लखनी देवी मंदिर” पड़ा। जिस पहाड़ पर यह मंदिर बना है, उसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत और लक्ष्मीधाम पर्वत के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1179 ईस्वी में कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर द्वारा कराया गया था। उस समय देवी की मूर्ति को इकबीरा देवी और स्तंभिनी देवी के नाम से जाना जाता था।
मंदिर निर्माण की पौराणिक कथा
मंदिर निर्माण से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, राजा रत्नदेव तृतीय के राज्यारोहण के समय 1178 ईस्वी में राज्य में भयंकर अकाल, महामारी और गरीबी छा गई थी और राजकोष खाली हो चुका था। ऐसे में राजा के विद्वान मंत्री पंडित गंगाधर ने माता लक्ष्मी का यह मंदिर बनवाने का सुझाव दिया। मंदिर के निर्माण के बाद अकाल और महामारी का प्रभाव खत्म हो गया और राज्य में खुशहाली लौट आई। तभी से लखनी देवी मंदिर की मान्यता और इसके प्रति लोगों की आस्था दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गई है।
धनतेरस और दीपावली पर विशेष पूजा
लखनी देवी मंदिर में धनतेरस और दीपावली पर विशेष पूजा की जाती है। लोगों की मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। इस मंदिर की आकृति धार्मिक ग्रंथों में बताए गए पुष्पक विमान के जैसे बनाई गई है। मंदिर के अंदर श्रीयंत्र भी बनाया गया है। लखनी देवी, अष्ट लक्ष्मियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती हैं और वे अष्टदल कमल पर विराजमान हैं। छत्तीसगढ़ में माता लक्ष्मी का यह एक मात्र प्राचीन मंदिर है।