Kali Pooja: दिवाली भारत का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। रोशनी के इस पर्व में हर तरफ दिए जगमगाते रहते हैं, पटाखे फोड़े जाते हैं और मां लक्ष्मी की पूजा होती है। पर क्या आपको पता है देश के कुछ हिस्सों में दिवाली के दिन काली (Kali Pooja) पूजा भी होती है। आइए विस्तार से जानते हैं इस खास परंपरा के बारे में।
कहां होती है काली पूजा?
दिवाली के दिन काली पूजा की परंपरा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और त्रिपुरा में मनाई जाती है। कोलकाता में यह पूजा सबसे ज्यादा धूमधाम से होती है। इसके अलावा, असम और बांग्लादेश में भी काली पूजा की जाती है। ये पूजा दिवाली के दिन आधी रात को ही की जाती है। बंगाली समाज के(Kali Pooja) काली बाड़ी में यह पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है। पुराने समय में श्मशान काली की पूजा होती थी और बली भी दी जाती थी। लेकिन अब यह परंपरा को कुछ जगहों पर ही निभाई जाती है।
काली पूजा क्यों की जाती है?
मां काली को शक्ति और रक्षक देवी माना जाता है। उनकी पूजा बुराई के नाश और अच्छाई की विजय के रूप में की जाती है। (Kali Pooja)मां काली को विनाशकारी रूप के साथ-साथ जीवनदायिनी शक्ति के रूप में भी पूजा जाता है। मान्यता है कि दिवाली के दिन ही अर्ध रात्री में मां काली की 60 हजार योगनियां एकसाथ प्रकट हुईं थी। इसलिए इस दिन मां काली की पूजा का विधान है।
काली पूजा का धार्मिक महत्व
काली माता को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं का मुख्य स्वरूप माना जाता है। माता काली की पूजा से नकारात्मक शक्तियों और सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं शास्त्रों के अनुसार माता काली सभी तरह के रोग और दोष का भी नाश करती हैं। ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु की शांति के लिए माता काली की पूजा कराई जाती है।