मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित बटेश्वर का मंदिर समूह एक ऐतिहासिक धरोहर है, जो सदियों तक जंगलों के भीतर छिपा रहा। ये मंदिर गुर्जर-प्रतिहार राजाओं द्वारा 9वीं शताब्दी में निर्मित किए गए थे, लेकिन समय की मार और कई आपदाओं के कारण ये खंडहरों में तब्दील हो गए। आज, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की मेहनत के बाद इन प्राचीन मंदिरों ने फिर से अपना खोया हुआ स्वरूप पा लिया है। आइए जानते हैं बटेश्वर की इस अद्भुत कहानी के बारे में विस्तार से।
बटेश्वर के 200 प्राचीन मंदिर
बटेश्वर के मंदिरों का निर्माण गुर्जर-प्रतिहार राजाओं ने 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच कराया था। बलुआ पत्थर से बने ये 200 मंदिर उत्तर भारतीय वास्तुकला की शुरुआती शैली का बेजोड़ उदाहरण हैं। मंदिर समूह लगभग 25 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और शिव, विष्णु और शक्ति जैसी देवताओं को समर्पित है। इस स्थान की भव्यता को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कभी धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा होगा।
खंडहर में बदल गए मंदिर
गुर्जर-प्रतिहार राजाओं का शासनकाल भारतीय इतिहास में एक सुनहरे दौर के रूप में देखा जाता है। इस दौरान स्थापत्य कला और संस्कृति ने नए आयाम स्थापित किए थे। हालांकि, महमूद गजनी के आक्रमण और उसके बाद के राजनीतिक उथल-पुथल के कारण इन मंदिरों की देखरेख नहीं हो पाई और ये धीरे-धीरे खंडहरों में तब्दील हो गए।
गजनी के आक्रमण से पतन
साल 1008 ईस्वी में महमूद गजनी के आक्रमण ने उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति को पूरी तरह बदल दिया। कन्नौज पर अधिकार करने के बाद गुर्जर-प्रतिहार राजवंश का पतन हो गया। इसके बाद किसी भी राजवंश ने बटेश्वर के मंदिरों की देखभाल नहीं की, जिससे यहां की सांस्कृतिक गतिविधियां भी समाप्त हो गईं।
भूकंप से भी मंदिर हुए ध्वस्त
इतना ही नहीं, 12वीं और 13वीं शताब्दी में आए भूकंपों ने इन मंदिरों को भारी क्षति पहुंचाई, जिससे ये खंडहर बन गए। ग्वालियर की जीवाजी यूनिवर्सिटी के प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के हेड एसके द्विवेदी के अनुसार, ये मंदिर भूकंप के दौरान गिर गए और फिर इन्हें पुनः स्थापित करने वाला कोई नहीं था। नतीजतन, ये खूबसूरत धरोहर घने जंगलों में गुमनामी के अंधेरे में खो गई।
डकैतों का आतंक और मंदिरों की उपेक्षा
बटेश्वर के मंदिर जिस इलाके में स्थित हैं, वह कभी डकैतों का गढ़ हुआ करता था। चंबल की घाटियों में दशकों तक डकैतों का आतंक फैला रहा, जिससे स्थानीय लोग इन मंदिरों तक पहुंचने से कतराते थे। इस वजह से भी ये मंदिर कई वर्षों तक उपेक्षित रहे।
कैसे पहुंचे बटेश्वर के मंदिर?
बटेश्वर के मंदिरों तक पहुंचने के लिए ग्वालियर या मुरैना से रास्ता लिया जा सकता है। ग्वालियर से इनकी दूरी लगभग 35 किलोमीटर है, जबकि मुरैना से ये करीब 30 किलोमीटर दूर हैं। हालांकि, यहां तक पहुंचना आसान नहीं है, लेकिन एक बार यहां पहुंचने के बाद आपको भारतीय स्थापत्य कला की एक अद्भुत झलक देखने को मिलती है।
इतिहास का एक अद्वितीय धरोहर
बटेश्वर के मंदिर केवल स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने ही नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण कहानी भी बयां करते हैं। इन मंदिरों का पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापना इस बात का प्रतीक है कि हमारे प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने के लिए जब जुनून और मेहनत साथ आते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है। बटेश्वर आज अपने नवीकृत रूप में इतिहास के उस गौरवशाली काल की याद दिलाता है, जब हमारी संस्कृति और कला का बोलबाला था।