Port Blair: पोर्ट ब्लेयर जो अंडमान निकोबार की राजधानी है, को नया नाम मिल चुका है। भारत सरकार ने इस जगह को भारतीय नाम ‘श्री विजयपुर’ दिया है। अब पोर्ट ब्लेयर श्री विजयपुरम के नाम से जाना जाएगा। पोर्ट ब्लेयर भारतीय इतिहास के समय से विशेष महत्व रखता है। अंग्रेजी शासनकाल में हुए स्वतंत्रता संग्राम की भी कई कहानियां इस जगह से जुड़ी हुई है।
क्यों बदला गया नाम?
मोदी सरकार के आने के बाद से ही देश की कई जगहों के नाम बदले गए हैं। आपने गौर किया होगा कि उन्हीं नामों को बदला गया है जिनका नाम मुगलों या अंग्रेजी शासन से जुड़ा हुआ था। नया नामकरण करने के पीछे सरकार की मंशा देश से गुलामी की हर निशानी को मिटाना है। पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने एक्स पर कहा कि-
“देश को गुलामी के सभी प्रतीकों से मुक्ति दिलाने के प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प से प्रेरित होकर आज गृह मंत्रालय ने पोर्ट ब्लेयर का नाम ‘श्री विजयपुरम’ करने का निर्णय लिया है।”
आजादी से जुड़ा है पोर्ट ब्लेयर
पोर्ट ब्लेयर देश की आजादी के लिए हुए संघर्ष का साक्षी है। स्वतंत्रता सेनानियों को दिए जाने वाली काला-पानी की सजा के बाद यहीं लाया जाता है। अंग्रेजी सेना की क्रूरता का प्रतीक ‘सेलुलर जेल’ पोर्ट ब्लेयर के ही एक शहर अटलांटा प्वॉइंट में है । हमारे कई क्रांतिकारी जैसे बाबाराव सावरकर, विनायक दामोदर सावरकर, बटुकेश्वर दत्त को इसे जेल में कैद रखा गया था।
चोल साम्राज्य से जुड़ा इतिहास
पोर्ड ब्लेयर का इतिहास चोल राजवंश के राजा राजेंद्र चोल प्रथम से जुड़ा हुआ है। राजा राजेंद्र के शासनकाल में पोर्ट ब्लेयर उनकी सेना का एक प्रमुख सैन्य अड्डा हुआ करता था। अंडमान द्विप समूह चोल राजाओं के लिए रणनीतिक और व्यापारिक रूप से काफी महत्व रखते थे।
कैसा पड़ा पोर्ट ब्लेयर नाम?
पोर्ट ब्लेयर को यह नाम अंग्रेज अधिकारी, ‘लेफ्टिनेंट रेजिनाल्ड ब्लेयर’ के नाम से दिया गया था । इस अधिकारी ने ही पोर्ट ब्लेयर का सर्वे कर इसे अंग्रेजों के लिए विकसित करवान का काम किया था। अंग्रेजों के लिए पोर्ट ब्लेयर प्रमुख स्थान था। इस जगह को और विकसित करने के लिए उन्होंने यहां पर एक आरा मिल भी शुरु कराया था। इस चाथम आरा मिल को आज भी देखा जा सकता है।
Positive सार
भारत को आजाद हुए 77 साल हो चुके हैं। लेकिन आज भी देश में की स्थान और स्मारकों के नाम मुगल शासक या अंग्रेजों के नाम पर हैं। अब सरकार धीरे-धीरे सभी नामों को भारतीय रूप दे रही है। आजाद भारत में कहीं भी गुलामी की निशानी नहीं रहेगी तभी देश पूर्ण रूप से आजाद महसूस करेगा।