Independence day: देश को स्वतंत्र हुए 77 साल हो गए हैं। आज हम जिस आजाद भारत में सांस ले रहे हैं और रोज नई उन्नती के आयाम गढ़ रहे हैं। उस आजाद भारत के सपने को सच बनाने के पीछे अनगिनत बलिदान की कहानी छिपी हुई है। आजादी की लड़ाई में जितना योगदान वीर सपूतों ने दिया है उतना ही सहयोग भारत की बेटियों का भी रहा है। गुलाम देश होने के बाद भी भारत की महिलाएं किसी काम में पीछे नहीं रहीं। आज हम उन्हीं वीरांगनाओं को याद करेंगे जिन्होने मां, पत्नी, बेटी का फर्ज निभाते हुए भी देशभक्ति के कर्तव्य को बखूबी निभाया।
बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal)
सन 1857 में हुई क्रांति के बारे में किसने नहीं सुना है। बेगम हजरत महल इसी क्रांति की पहली महिला क्रांतिकारी थीं। बेगम हजरत महल ने अपनी पूरी सेना के साथ ब्रिटिश शासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और अपने कुशल नेतृत्व में उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। बेगम हजरत महल ने अपनी वीरता से अवध प्रांत के गोंडा, फैजाबाद, सलोन, सुल्तानपुर, सतापुर और बहराइच को अंग्रेजों से मुक्त करा दिया था।
कुछ समय बाद अंग्रेजों ने दुगनी सेना और दुगने हथियार के साथ हजरत महल पर हमला किया तब उन्हें पीछे हटना पड़ा था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और गुप्त रूप से अंग्रेजों के खिलाफ अभियान चलाती रहीं। उन्होंने गांव-गांव जाकर हिंदू-मुस्लिम एकता कायम की और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ तैयार किया। अंग्रेजों ने पहले बेगम के नवाब को फिर उनके सभी करीबियों की हत्या कर दी। अकेले पड़ जाने पर उन्हें मजबूरन नेपाल जाना पड़ा। हजरत महल की बाहदुरी के किस्से से वहां के राजा राणा जंगबहादुर काफी प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने बेगम को नेपाल में शरण दी। वहां वो अपने बेटे के साथ एक आम जीवन जीने लगीं और 1879 में उनका निधन हो गया।
वीरांगना अवंतीबाई लोधी (Veerangana Avantibai Lodhi)
वीरांगना अवंतीबाई लोधी की शादी रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य सिंह के साथ हुई थी। लेकिन विक्रमादित्य अक्सर बीमार रहा करते थे। क्योंकी रानी के दो बेटे अमान सिंह और शेरसिंह भी कम उम्र के थे इसलिए अवंतीबाई को राजपाट अपने हाथों में लेना पड़ा। राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने रामगढ़ को भी ब्रीटिश सम्राज्य में मिला लिया। अवंतीबाई को अपना राज्य अंग्रेजों को सौंपना कतई मंजूर नहीं था।
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1857 के क्रांतिकारियों ने अवंतीबाई को इस क्रांति में सहयोग का संदेश भेजा। रानी ने भी सहर्ष ही क्रांति का ऐलान किया और अपने क्षेत्र के राजाओं और जमींदारों को संदेश के साथ चूड़ियां भेजी। अपने संदेश में उन्होने लिखा था ‘‘देश की रक्षा करने के लिए या तो कमर कस लो या चूड़ी पहनकर घर में बैठों तुम्हें धर्म ईमान की सौगंध जो इस कागज का सही पता बैरी को दो।’’ जहां बड़े-बड़े राजाओं ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए थे वहीं रानी अवंतीवाई ने कई बार अंग्रेजों को धूल चटाई। रानी ने ना सिर्फ अपने राज्य रामगढ़ को अंग्रेजों से आजाद कराया बल्की घुघरी, रामनगर, बिछिया से भी अंग्रेजों को खदेड़ दिया। अपनी हार से झुंझलाए अंग्रेजों ने एक युद्ध में रानी को चारों तरफ से घेर कर हमला किया। हमले में रानी के हाथ में गोली लगी और उनका हथियार उनके हाथों से छूट गया। रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए अपने सैनिक की तलवार छीनकर अपना बलिदान दे दिया।
भीकाजी कामा (Bhikaji Kama)
भीकाजी कामा का जन्म मुंबई के एक बहुत ही संपन्न पारसी परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनके विचार देशभक्ति से जुड़े हुए थे। उन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा योगदान दिया है। भीकाजी कामा ने अपने लेखों से अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा जनमत हासिल किया था। देश में लैंगिक समानता के लिए बहुत काम किया। भीकाजी कामा उस समय की एक मजबूत महिला नेता के तौर जानी जाती थीं उन्होंने कई समाजिक कुरीतियों को बदलने के लिए काम किए । उन्होंने जर्मनी के इंटरनेशनल सोशलिस्ट मीट में भारत का ध्वज फहराया था जो आजादी का प्रथम ध्वज कहलाया।
महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने वाली पहली महिला के बारे में जानते हैं आप?
भीकाजी के अंदर समाज सेवा की भावना शुरुआत से ही थी। देश में प्लेग के रोगियों की सेवा करते-करते उन्हें भी प्लेग हो गया तब इलाज के लिए उन्हें ना चाहते हुए थी लंदना जाना पड़ा। लेकिन वहां भी वो नहीं रुकी और होमरूल सोसाइटी की सदस्य बन गईं। जहां उनकी मुलाकात श्यामजी कृष्ण वर्मा, दादाभाई नौरोजी और सिंह रेवाभाई राणा से हुई और वो भारतीय होमरूल सोसाइटी की समर्थक बन गईं। देश लौटने के लिए अंग्रेजों ने शर्त रखी की भीकाजी राष्ट्रवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगी। भीकाजी कामा ने अंग्रेजों की शर्त नहीं मानी और विदेशी धरती से ही देश के लिए काम करती रहीं।
अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali)
अरुणा आसफ अली उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बिना किसी स्वार्थ के हिस्सा लिया। उन्होंने कभी अपने नाम को देश से उपर नहीं रखा। यही कारण है कि आज अरुणा आसफ अली का काम बहुत कम लोग जानते हैं। अरुणा कांग्रेस पार्टी की सदस्य थीं उन्होने नमक सत्याग्रह में बढ़चढ़ कर हिस्स लिया और अपना अहम योगदान दिया। अंग्रेजों ने अरुणा को गिरफ्तारकर जेल में डाल दिया। जेल की चारदिवारी अरुणा को रोक नहीं पाई यहां भी उन्होंने प्रदर्शन और हड़ताल कर कैदियों के जीवन में सुधार लाने का काम किया।
सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu)
सरोजनी नायडू जिन्हें ‘भारत कोकिला’ के नाम से जाना जाता है वो सिर्फ एक बेहतरीन कवियत्री नहीं थीं। भारत को आजाद कराने में दिया गया उनका योगदान भी काफी अहम है। उन्होंने गांधी के साथ कई सत्याग्रहों में हिस्सा लिया। भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें जेल में भी डाल दिया था। अपनी कलम और कविताओं के जरिए उन्होंने लोगों में देशभक्ति की भावना जगाई और अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने, लड़ने का साहस दिया। सरोजनी नायडू ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1925 में सरोजनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। उनके नाम भारत की पहली महिला गर्वनर होने का सम्मान भी दर्ज है।

