Ram Mandir Dhwaj: क्या आप जानते हैं कैसा है राम मंदिर का ध्वज, क्या है इस पर बने पेड़ की कहानी!

Ram Mandir Dhwaj: अयोध्‍या में भगवान राम मंदिर के लिए देश के कोने-कोने से कुछ न कुछ विशेष चीजें मंगवाई जा रही हैं। जिनमें मिट्टी, जल, मूर्ति और भी कई सारी चीजें शामिल हैं। ऐसी ही चीजों में से एक खास चीज है राम मंदिर के शिखर पर लहराई जाने वाली ध्वज। 

खास है राम मंदिर का ध्वज 

 अयोध्या में राम मंदिर पर लगाए जाने वाले ध्‍वज को रीवा में बनावाया गया है। इस खास ध्‍वज में कोविदार का वृक्ष और सूर्य को चिन्हांकित किया गया है, जो महाराज दशरथ के सूर्यवंशी होने का प्रतीक है। इसमें सूर्य और एक पेड़ को बनाया गया है। 

रघुवंश का प्रतीक 

ध्वज में बना सूर्य भगवान राम के वंश को दर्शाता है। वहीं इसमें बने कोविदार वृक्ष अयोध्या साम्राज्य की शक्ति और संप्रभुता को बताता है। ध्वज पर बना ये वृक्ष अयोध्‍या का राजवृक्ष के रूप में पहचाना जाता था।  कोविदार वृक्ष को लेकर उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के अयोध्या शोध संस्थान में इस बात पर काफी रिसर्च किया गया है। 

क्या कहते हैं शोध? 

शोध के मुताबिक त्रेता युग में अयोध्या साम्राज्य के ध्‍वज पर कोविदार का सुंदर वृक्ष बनाया गया था। बाद के समय में महाराणा प्रताप के वंशज राणा जगत सिंह ने संपूर्ण वाल्मीकि रामायण पर चित्र उकेरे। इनमें से एक में भरत के सेना सहित चित्रकूट आकर भगवान राम को अयोध्या वापस चलने के आग्रह की चर्चा भी की गई है। इस प्रसंग में भारद्वाज आश्रम में श्रीराम शोर सुनकर लक्ष्मण को देखने को कहते हैं। लक्ष्मण उत्तर से आ रही सेना के रथ पर लगे ध्वज पर कोविदार वृक्ष देखकर पता लगाते हैं कि कोई सेना आ रही है और वो सेना अयोध्या साम्राज्‍य की है। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के 84वें सर्ग में निषादराज गुह के कोविदार वृक्ष से अयोध्या की सेना पहचाने का प्रसंग पढ़ा जा सकता है। 

क्या होते हैं कोविदार वृक्ष? 

बॉटनिकल साइंस ये कहता है कि कचनार और कोविदार एक ही कुल की दो अलग प्रजातियों से आते हैं। दोनों ही वृक्ष लेग्यूमिनोसी कुल और सीजलपिनिआयडी उपकुल के तहत बॉहिनिया प्रजाति की समान, लेकिन अलग वृक्ष जातियों के रूप में पहचान रखती हैं। 

दोनों प्रजातियों को बॉहिनिया वैरीगेटा और बॉहिनिया परप्यूरिया के नाम से जाना जाता है। बॉहिनिया प्रजाति की वनस्पतियों में पत्‍तों का अगला हिस्‍सा बीच में इस तरह से कटा होता है, जैसे दो पत्‍तों को आपस में जोड़ा गया हो। 

संस्कृत साहित्य में दोनों प्रजातियों के लिए ‘कांचनार’ और “कोविदार’ शब्द का उपयोग किया गया है। बॉहिनिया वैरीगेटा को कचनार और बॉहिनिया परप्यूरिया को कोविदार कहा जाता है। 

आयुर्वेद में भी जिक्र 

आयुर्वेद में भी कोविदार और कचनार को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया गया है। फिर भी एक कुल के होने के कारण दोनों के गुण और आकार-प्रकार एक जैसे दिखाई देते हैं। आयुर्वेद इलाज में भी इनके फूल और छाल को लिया जाता है। 

Positive सार 

अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानकारी रखना एक अलग ही तरह का कौशल होता है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की वजह से ही आज हर युवा अपने सांस्कृतिक और पौराणिक महत्वों को करीब से जान पा रहा है।

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Rishita Diwan

Content Writer

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