Dusshara: रामायाण की कथा बुराई और अच्छाई, विनाशी और अविनाशी, क्रोध और संयम, छल और प्रेम से परे है। इस ग्रंथ में समाहित कथा प्रकृति की सुरक्षा, मानवता, श्रेष्ठता और जन कल्याण की तरफ इशारा करती है। रामायण में जहां भगवान राम जीवन का आधार हैं वहीं रावण बुराई का प्रतीक है जिसका अंत अच्छाई से हुआ। राम हर किसी के मन में बसे हैं, वे पूजे जाते हैं और रावण का उदाहरण अश्रेष्ठता के रूप में सदियों से याद किया जाता है और सदियों किया जाता रहेगा। लेकिन दिलचस्प बात ये है कि राम और रावण दोनों ही हमारे जीवन का हिस्सा हैं जिसे हम दशहरा के रूप में आत्मसात करते हैं….
‘दशहरा’ का पुराणों शाब्दिक अर्थ है ‘दस’ और ‘हारा’ ये दस सिरों वाले रावण के अंत से जुड़ा है। भक्ति में डूबा जब हर व्यक्ति दशमी को रावण का वध कर दशहरा मनाता है, तो वो राम के पथ का अनुसरण करता है। दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में उत्साह से मनाया जाता है। पर अगर कोई गहराई से जानना चाहे तो उसके दिमाग में ये बात जरूर आएगी कि राम तो जीवन का आधार हैं, राम मर्यादा पुरोषोत्तम हैं, राम संयम के परिचायक हैं, लेकिन रावण भी तो प्रकांड पंडित थे। चारों वेद, छह उपनिषद के ज्ञाता थे। शिव के भक्त थे और परिवार के लिए समर्पित थे। फिर रावण ने ऐसी भूमिका क्यों निभाई, क्या वास्तव में ये अच्छे और बुरे के समीकरण के लिए था?
रावण के पिता एक महर्षि थे जबकि उनकी माता राक्षसी कुल की थीं। इसलिए रावण के अंदर दोनों गुण आए। रावण ने ब्राह्मण और राक्षस दोनो में प्राथमिकता राक्षस वंश को दी। रावण का ये गुण बताता है कि हमारी प्राथमिकताओं से भी जीवन में काफी प्रभाव पड़ता है। अच्छे-बुरे का ज्ञान होने से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि हमें क्या चुनना है। रावण एक सैद्धांतिक व्यक्ति था, उसने माता सीता की अनुमति के बिना कभी भी उनको नुकसान नहीं पहुंचाया। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ऐसा इसलिए था क्योंकि रावण हमेशा अपने सिद्धांतों का पालन करता। रावण एक महान अन्वेषक था विज्ञान के प्रति उसका प्रेम रामायण कथाओं से साफ दिखाई देता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण ने अपने वैज्ञानिक ज्ञान के माध्यम से अपने उड़ने वाले वाहन पुष्पक विमान का निर्माण किया था। लेकिन उसका उपयोग माता सीता के अपहरण के लिए किया।
ग्रंथों में इस बात का भी जिक्र है कि रावण को अपने अंतिम समय में अपनी गलतियों का अहसास हो गया था इसलिए मरने से पहले उसने कुछ उपदेश दिए थे, जिसके मुताबिक रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान देते हुए कहा था कि किसी अच्छे काम की शुरूआत जल्दी कर देनी चाहिए और बुरे काम के लिए मन कितना भी कहे उससे दूर रहना चाहिए। रावण मन को वश में करने की बात कह रहा था। रावण ने अपने दूसरे उपदेश में कहा कि अपनी शक्ति और पराक्रम पर इतना घमंड नहीं करना चाहिए कि दूसरा व्यक्ति छोटा लगने लगे।
रावण का तीसरा उपदेश था कि, अपने शत्रु और मित्र के बीच पहचान करने की समझ व्यक्ति में जरूर होनी चाहिए। रावण का आखिरी उपदेश था कि, किसी भी पराई स्त्री पर बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति पराई स्त्री पर बुरी नजर रखता है वह खत्म हो जाता है।
रामायण में भले ही रावण की भूमिका खलनायक की हो लेकिन भगवान राम भी रावण के गुणों का सम्मान करते थे। रावण को मारने के बाद भगवान राम ने रावण को हाथ जोड़कर नमन किया और माफी मांगी। क्योंकि रावण एक ब्राह्मण था इसलिए भगवान राम और लक्ष्मण पर हत्या का पाप लगा। भगवान राम ने प्राश्यचित के लिए भगवान शिव की आराधना की और शिव ने नीलकंठ पक्षी के रूप में भगवान राम को दर्शन दिए।
संत वाल्मीकि ने लिखा है “रावणो लोकरावण” अर्थात् लोक को रुलाने वाले को रावण कहते हैं। ऐसा रावण जो हमारे भीतर है। हम पूरे राम नहीं हो सकते हैं न ही पूरे रावण। लेकिन रावण रूपी अकांक्षाएं हमारे भीतर सोई हुई अवस्था में जरूर होती है जिसे राम बनकर खत्म करना हमारा काम है। क्रोध, काम, वासना, असंयम, अहंकार, प्रकृति के विनाशी, लालच, लोभ, घृणा जैसी बुराईयां हमें रावण बनाती है। इसके ठीक विपरित अगर हम अपने इन व्यवहारों को काबू में करें तो हम भगवान राम के रास्ते पर चल सकते हैं। यही वजह है कि हर साल दशहरा का पर्व उत्साह, ऊर्जा और उमंग लेकर आता है। ये बताता है कि अच्छाई की जीत होती है, बुराई भले ही साहसी और पराक्रमी हो सकती है लेकिन अच्छाई में संयम और मानव कल्याण छुपा है जिसकी जीत हर हाल में होती है। अपने अंदर के राम को जगाए रखने और रावण रूपी अकांक्षाओं को खत्म करने की दिशा में काम करना हमारा कर्तव्य और धर्म दोनों है।
शुभ दशहरा!