क्या होगा जब किसी को कास्ट, धर्म, कम्यूनिटी और लिंगभेद की वजह से अपने सपनों को पूरा करने न दिया जाए। हम भारत के निवासी है, हमारा लोकतंत्र हमें समानता का अधिकार देता है। लेकिन आज भी कई ऐसी जगहें मौजूद हैं जहां लोगों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। ऐसे ही लोगों में से एक ह 27 साल की जयश्री, जिन्हें आदिवासी कम्यूनिटी से होने की वजह से अपने समाज से लड़ाई लड़कर आगे बढ़ना पड़ा। आज जयश्री न सिर्फ एक सफल पायलट हैं, बल्कि तमिलनाडू की पहली आदिवासी महिला पायलट होने का गौरव भी उन्हें मिला है। जानते हैं एक बहादुर लड़की की कहानी..
जयश्री की कहानी
27 साल की जयश्री आदिवासी कम्यूनिटी से संबंध रखती हैं। वो तमिलनाडू की पहली आदिवासी पायलट बनी हैं। जयश्री बडगा कोठागिरी के पास कुरुकाथी की रहने वाली हैं। जयश्री की प्रारंभिक अपने घर में ही हुई है, जिसके बाद उन्होंने एक आईटी प्रोफेशनल के तौर पर काम करते हुए एक फ्लाइंग स्कूल में एडमिशन लिया। ग्राम प्रशासनिक अधिकारी पद से रिटायर जयश्री के पिता जे मणि ने हमेशा अपनी बेटी को आगे बढ़ाने का काम किया। स्कूलिंग और कॉलेज के बाद कोयंबटूर से कंप्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग में एमई करने के बाद जयश्री ने अफ्रीका के एक फ्लाइंग स्कूल से फ्लाइंग कोर्स पूरा किया।
जब जयश्री ने परिवार को बताया कि वह विदेश में फ्लाइंग की ट्रेनिंग लेना चाहती हैं तो सभी ने उनके इस फैसले का बहुत विरोध किया। पर जयश्री अपनी बात पर अड़ी रहीं। जब परिवार में लोगों ने उनकी बात सुनी तो समाज से उनके परिवार और उन्हें विरोध झेलना पड़ा। बावजूद इसके वे अपने निर्णय को लेकर दृढ़ थीं।
तमिलनाडु की पहली महिला पायलट
जयश्री कहती हैं कि वे बचपन से ही पायलट बनना चाहती थीं। जब लोग उनसे पूछते थे कि बड़ी होकर वो क्या करेंगी तो उनका एक ही जवाब होता था। ‘पायलट’। बड़े होते-होते जब उन्होंने इसके बारे में जानकारी एकत्रित करना शुरू किया तो उन्हें कोई सही मार्गदर्शक नहीं मिला। यही वजह थी कि वे इस फील्ड में आगे नहीं बढ़ सकीं। कोविड के दौरान जब उन्होंने रिमोट काम करना शुरू किया तो उन्होंने पायटल की पढ़ाई के बारे में रिसर्च किया। उन्होंने एक बार फिर अपना पैशन खोज लिया। बाद में जयश्री ने नौकरी छोड़कर पायलट की ट्रेनिंग के लिए एग्जाम दिया और ट्रेनिंग लेकर पायलट बन गईं।