तानाजी मालुसरे

Loading

Loading


भारत का इतिहास भारतीयों द्वारा लिखित एक जीवनी है। वीरता, बहादुरता और साहस ही भारतीयों की पहचान है। विभिन्न शासकों ने वर्षों तक भारत पर शासन किया। यहां तक कि मुगलों के आक्रमण और ब्रिटिश का शासन भी भारत की जड़ों को प्रभावित नहीं कर पाया।

‘विविधता में एकता’ भारत को सबसे अलग बनाती है। यह कहानी है उस शख़्स की जिन्होंने दोस्ती के नाते अपनी जान तक कुर्बान कर दी। यह कहानी है उस वीर योद्धा की जिन्होंने अपने पुत्र के विवाह से बढ़कर अपने देश की रक्षा को माना। यह कहानी है उस महान शूरवीर की जिन्होंने आखिरी दम तक लड़ कर अपनी जान तो गवां दी परंतु अपना नाम भारत के इतिहास एवं पुणे के मशहूर किले ‘सिंहगढ़’ में दर्ज कर दिया। 

तानाजी मालुसरे, प्रसिद्ध मराठा योद्धाओं में से एक हैं। इनका जन्म 1600 ईस्वी में सतारा जिला, महाराष्ट्र में हुआ। उनके पिता का नाम सरदार कोलाजी और माता का नाम पार्वतीबाई था। तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति एवं अत्यंत प्रिय मित्र थे। तानाजी की वीरता और बल के कारण शिवाजी उन्हें ‘सिंह’ कह कर पुकारते थे।

1665 में शिवाजी ने मुगलों के साथ एक संधि की। इस संधि के तहत उन्हें मुगलों को 22 किले सौंपने पड़े। परंतु शिवाजी महाराज इस संधि से बिल्कुल भी खुश नहीं थे और उन्होंने अपनी सेना के साथ मिलकर ‘कोंढाणा’ किले पर दोबारा कब्ज़ा करने का निर्णय लिया। 

एक ओर जहाँ युद्ध की तैयारी चल रही थी, वहीं दूसरी ओर तानाजी के पुत्र के विवाह की तैयारी भी आरंभ हो चुकी थी। जैसे ही तानाजी को इस युद्ध की जानकारी मिली, वे युद्ध में शामिल होने के लिए दौड़ पड़े। देश की रक्षा एवं शिवाजी महाराज के आदेशों का पालन करना ही उन्होंने अपना प्रथम कर्तव्य समझा।

इसी बीच कोंढाणा किले पर 4 फरवरी 1670 को मराठाओं द्वारा एक ऐतिहासिक युद्ध का आरंभ हुआ। युद्ध में तानाजी समेत 300 सिपाही किले को फ़तह करने के लिए चल पड़े। किले की दीवारें इतनी ऊँची थीं कि उन पर आसानी से चढ़ना नामुमकिन था। फिर भी सारे सैनिक चढ़ाई करने में कामयाब हुए और मुगल सैनिकों पर हमला बोल डाला । इस हमले से मुग़ल सेना बेख़बर थी।

मराठाओं ने मुगलों को हराकर किले को वापस हासिल तो कर लिया लेकिन तानाजी को खो दिया। जब शिवाजी महाराज को यह ख़बर मिली तो उन्होंने कहा कि, “गढ़ आला पण सिंह गेला” अर्थात् “गढ़ तो हाथ में आया, परन्तु मेरा सिंह (तानाजी) चला गया”। 

तानाजी के शौर्य और सूझ-भुझ के कारण मराठाओं को विजय प्राप्त हुई। सूर्योदय होते-होते किले पर भगवा ध्वज लहराया जाने लगा।

अंत में, शिवाजी ने तानाजी के सम्मान में  कोंढाणा किले का नाम “सिंहगढ़” किले में बदल दिया और तानाजी का स्मारक भी बनवाया। सिंहगढ़ का किला तानाजी मालुसरे के बलिदान के लिए इतिहास में और देशवासियों के दिलों में प्रसिद्ध हो गया।

Avatar photo

Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

CATEGORIES Business Agriculture Technology Environment Health Education

info@seepositive.in
Rishita Diwan – Chief editor

8839164150
Rishika Choudhury – Editor

8327416378

email – hello@seepositive.in
Office

Address: D 133, near Ram Janki Temple, Sector 5, Jagriti Nagar, Devendra Nagar, Raipur, Chhattisgarh 492001

FOLLOW US

GET OUR POSITIVE STORIES

Uplifting stories, positive impact and updates delivered straight into your inbox.