भारत
के मालवा प्रांत ने कई वीर योद्धाओं को जन्म दिया है। इन वीर योद्धाओं में शामिल थीं हमारी कुछ वीरांगनाएं…कुछ ऐसी साहसी महिलाएं जिन्होंने अपनी भागीदारी से इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिख दिया। किसी ने युद्ध भूमि में तलवार थामी तो किसी ने समाज में व्यापत कुरीतियों को हटाने का बीड़ा उठाया। मालवा क्षेत्र ने भी ऐसी कई महान विभूतियों को जन्म दिया था जिसमें महारानी अहिल्या बाई होलकर का नाम अग्रणी है।
200 साल बाद भी आज उनका नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। अहिल्या बाई होलकर ने बालिका शिक्षा, महिलाओं से जुड़े सामाजिक कुरीतियों और कुशल प्रशासन के क्षेत्र में अपनी क्षमता का लोहा मनवाया। उन्होंने साबित किया कि महिलाएं चाहे किसी भी ज़माने में जन्म लें समाज में कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती हैं।
पिता
की सूझबूझ से थामा शिक्षा का हाथ
अहिल्या बाई का जन्म
मानकोजी सिंधिया के घर 1725 में हुआ जो कि उस समय महाराष्ट्र के बीड जिले में एक सम्मानित परिवार से संबंधित थे। मानकोजी सिंधिया की दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि बालिका अहिल्या पढ़-लिख सकीं। दरसअल मानकोजी अपनी बेटी को पढ़ाना तो चाहते थे लेकिन तब समाज बेटियों का पढ़ना-लिखना अच्छा नहीं मानता था। मानकोजी ने ये ठान लिया था कि उनकी बेटी स्कूल नहीं जा सकती तो क्या हुआ पढ़ तो सकती है। उनके पिता की इसी इच्छाशक्ति की वजह से अहिल्या को घर पर ही पढ़ना सिखाया गया। उनके पिता के प्रयासों का ही ये परिणाम था कि आगे चलकर महारानी अहिल्या बाई होलकर ने बालिका शिक्षा और महिला अधिकारों की अलख को जगाया।
छोटे
से गांव से मालवा की महारानी बनने का सफर
मल्हार
राव खांडेकर मालवा के प्रसिद्ध पेशवा थे। अपनी राजनैतिक यात्रा के दौरान मल्हार राव पड़ाव के लिए शिव मंदिर में रूक गए। उन्होंने देखा कि एक छोटी सी बालिका पूरा दिन शिव मंदिर के कामकाज में लगी रहती। शिव की पूजा करती और जरूरतमंद लोगों की मदद करती है।
उनकी करूणा वात्सल्यता और शिव भक्ति से खुश होकर मल्हार राव ने उन्हें अपनी बहु बनाने का फैसला किया। वर्ष 1754 में कुंभेर के युद्ध में अहिल्या बाई के पति खांडेराव की मृत्यु हो गई। मल्हार राव अहिल्या बाई के प्रशासनिक समझ और युद्ध कला सीखने की रूचि को बखूबी समझते थे। उन्होंने अहिल्या बाई को युद्ध कला नीतियों में निपुण किया और एक दिन इंदौर की बागडोर अहिल्या बाई के हाथों में आ गई।
एक महिला के शासक बनने की बात आस-पास के राजाओं को रास नहीं आ रही थी । मालवा को कमजोर समझ कर राज्य को हड़पने के लिए राघोवा पेशवा ने अपनी सेना इंदौर भेज दी। महारानी अहिल्या बाई होलकर ने अपनी सूझ-बूझ से इंदौर की रक्षा की और इंदौर की प्रजा का दिल भी जीता। उन्होंने अपने कुशल राजनीतिक क्षमता के आधार पर ही अंग्रेजों के व्यापार के पीछे छिपे इरादों को पहचाना और उनके इरादों से पेशवा को आगाह किया।
आज अहिल्या बाई होलकर का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। अपने शासन के दौरान अहिल्या बाई होलकर ने इंदौर में कई महत्वपूर्ण विकास कार्य किए। उन्होंने बांध, घाट, टैंक और तालाब बनवाए। मालवा क्षेत्र में कई सुंदर किले हैं जो आज पर्यटन के लिहाज से मालवा की समृद्धि को बढ़ाता है, ऐसे किलों का निर्माण करवाया। जरूरी स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाएं भी उपलब्ध करवाईं। उनके शासनकाल के दौरान, कला और संस्कृति विकसित हुई। अहिल्या बाई महान और धर्मपरायण स्त्री थीं। उनके सम्मान में मध्यप्रदेश इंदौर घरेलू हवाई अड्डे का नाम देवी अहिल्याबई होलकर हवाई अड्डा रखा गया है। अहिल्या बाई होलकर जानती थीं कि शिक्षा समाज की दशा और दिशा दोनों तय करती है इसीलिए उन्होंने हर परिस्थितियों में शिक्षा की लौ को बुझने नहीं दिया। जिसकी चमक आज इंदौर के अहिल्या बाई होलकर विश्वविद्यालय के रूप में देखने को मिलती है ।