मेरी आवाज ही पहचान है…स्वर कोकिला लता मंगेशकर

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा…मेरी आवाज़ ही पहचान है, ग़र याद रहे। 

ये गीत हर संगीत प्रेमी को आज भावुक कर रहा है। संगीत को ईश्वर की तरह पूजने वाली स्वर कोकिला अब संगीत की तरह ही ईश्वर में विलिन हो गई हैं। 8 दशकों तक संगीत के सुरों से मिठास घोलने वाली लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं रहीं। 6 फरवरी को 92 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाली लता मंगेशकर हमेशा अमर रहेंगी। उनका व्यक्तित्व इस बात को पूरी तरह से चरितार्थ करता है कि लीजेंड्स मरते नहीं है अमर हो जाते हैं। और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर भी संगीत की तरह ही अमर हैं। संगीत में लता मंगेशकर जैसा दूसरा कोई नहीं हो सकता और उनका व्यक्तित्व अद्भुत था। उनके सरल, सहज और बेबाक अंदाज़ ने हर किसी को प्रभावित किया। हमारी श्रद्धांजलि के रुप में उनकी स्मृति शेष के कुछ अंश…

परिवार और संगीत में लगा दिया जीवन

लता मंगेशकर ने 13 साल की छोटी सी उम्र में घर की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने मजबूरी में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। पैसों के लिए फिल्मों में छोटे-छोटे रोल किए। पर उन्हें एक्टिंग पसंद नहीं थी। उनका कहना था कि अगर वो शादी कर लेती तो जिम्मेदारियों को छोड़कर दूसरे घर जाना पड़ता और यही वजह थी कि उन्होंने शादी नहीं कि।

पतली आवाज़ की वजह से रिजेक्शन झेला

18 साल की लता की आवाज़ जब संगीतकार गुलाम हैदर ने सुनी तो उन्होंने तब के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से लता को मिलवाया। शशधर ने लता को यह कहकर मना कर दिया कि इनकी आवाज़ बहुत पतली है और नहीं चलेगी। बाद में गुलाम हैदर ने ही लता मंगेशकर को पहला ब्रेक दिया।

उसूलों से नहीं किया कभी समझौता

लता मंगेशकर अपने उसूलों की पक्की थीं। लता मंगेशकर द्विअर्थी गाने नहीं गाती थीं। उन्होंने इसके लिए कई लड़ाइयां भी लड़ीं, राइटर्स हमेशा इस बात पर नाराज़ हो जाते थे कि लता मंगेशकर की वजह से उन्हें अपने गाने के शब्द बदलने पड़ते हैं। इसके अलावा लता मंगेशकर ने सिंगर्स के रॉयल्टी के हक की भी लड़ाई लड़ी। इस बात के लिए उनकी रफी साहब से बहस हो गई थी। जिसकी वजह से दोनों ने 4 साल तक एक दूसरे के साथ काम नहीं किया।

राज्यसभा सांसद रहते हुए नहीं लिया कोई भत्ता

दिवंगत लता मंगेशकर साल 1999 से 2005 तक राज्यसभ की सदस्य रहीं लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में सांसद का कोई भत्ता नहीं लिया। उन्होने वेतन और लेखा कार्यालय के द्वारा किए गए सभी भुगतान लौटा दिए थे।
मेहनत, संघर्ष, कला, संकल्प और अनुशासन से मिलकर बनीं थी लता मंगेशकर। जैसे संगीत के सात सुर अमर है वैसे ही लता मंगेशकर सदियों,लोगों के दिलों में अमर रहेंगी। चेहरे, नाम, सदी सबकुछ बदलते जाएंगे, पर लता मंगेशकर याद रहेंगी।
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Dr. Kirti Sisodhia

Content Writer

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