लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव है, जिससे चुनावी प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
एक साथ चुनाव से सरकार का चुनावी खर्च घटेगा, जिससे धन की बचत होगी और विकास कार्यों के लिए अधिक पैसा मिलेगा।
लगातार चुनावों से मुक्ति मिलने के कारण सरकारें अपनी नीतियों और योजनाओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर पाएंगी।
छोटे राजनीतिक दलों के लिए चुनाव लड़ना कठिन हो सकता है क्योंकि एक साथ चुनावों में ज्यादा संसाधन की जरूरत होती है।
इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान में बड़े बदलाव करने की आवश्यकता होगी, जो आसान नहीं होगा।
1950 के दशक तक भारत में चुनाव एक साथ होते थे, लेकिन बाद में राज्यों की परिस्थितियों के कारण यह प्रथा बंद हो गई।
केंद्र सरकार गंभीरता से विचार कर रही है, जबकि विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहा है।
अभी तय नहीं है कि यह प्रस्ताव लागू होगा या नहीं, इसके लिए सभी राजनीतिक दलों की सहमति और संसद में कानून बनाना होगा।