धमतरी (छत्तीसगढ़)
की 16 वर्षीय
चंचल सोनी |
माता- पिता की आर्थिक तंगी, उस पर से पैदा ही एक पैर के साथ होना |
बचपन बुआ के घर और स्पेशल एबल्ड लोगो की संस्था
में बीता |
एक ही पैर सही लेकिन अपनी क्षमता को मापने
ऊँचे - ऊँचे पेड़ो पर चढ़ने का शौक था |
चंचल के हौसलों को बल मिला, उन्होंने भी पहाड़ो को फतह करने का सपना बनाया |
रोजाना एक पैर और बैसाखी से 20 किमी. चलने का अभ्यास शुरू किया |
महीनो के अथक अभ्यास और कोशिशों से वो एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले दल में शामिल हुई |
एवेरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान बैसाखी का निचला हिस्सा टूटा, हिम्मत भी टूटी लेकिन चंचल ने अपना हौसला टूटने नहीं दिया |
और एक पैर से ही माउंट एवेरेस्ट के बेस कैंप तक 5 हजार 364 मीटर की चढ़ाई 10 दिनों में पूरी की |
अपने टीम की सबसे
छोटी मॉन्टेनर के सपने की
ऊंचाई और भी बढ़ गयी |
अब वो साउथ अफ्रीका के
किलिमंजारो को फतह
करना चाहती है |
मोरल ऑफ़ दी स्टोरी
जब आप खुद पर विश्वास कर
अपने लक्ष्य पर डटे रहे,
तो हर मुश्किल खुद रास्ता
बनाती हैं।
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