पाली गाँव में स्थित यह मंदिर अष्टविनायक दर्शन का तीसरा स्थान है। लेकिन इसे खास बनाती है एक भक्त की अनोखी भक्ति!
सेठ का बेटा बल्लाल गणेशजी का परम भक्त था। उसकी भक्ति इतनी गहरी थी कि उसने गणेशजी का दिल जीत लिया।
लेकिन बल्लाल के पिता को यह भक्ति पसंद नहीं आई। गुस्से में उन्होंने बल्लाल को पेड़ से बाँध दिया और गणेश की मूर्ति तोड़ दी।
भूखे-प्यासे बल्लाल की मदद के लिए गणेशजी ब्राह्मण के रूप में आए और उसे बंधन से मुक्त किया। क्या आप जानते हैं, फिर क्या हुआ?
गणेशजी ने बल्लाल से वरदान मांगने को कहा। बल्लाल ने उनसे उसी स्थान पर हमेशा के लिए विराजित रहने की प्रार्थना की।
गणेशजी ने बल्लाल की इच्छा पूरी की और मूर्ति का रूप धारण कर उसी स्थान पर विराजमान हो गए। तभी से ये बल्लालेश्वर विनायक कहलाए!
सेठ द्वारा खंडित की गई मूर्ति भी मंदिर प्रांगण में ढूंढी विनायक के नाम से स्थापित है। भक्त दोनों मूर्तियों की पूजा करते हैं।
मंदिर में हर साल गणेशोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और यहां सूर्य की किरणें सीधे भगवान के मुख पर पड़ती हैं!
तो अब जब भी पाली जाएं, इस मंदिर का दर्शन जरूर करें और बल्लालेश्वर की अनोखी कथा से प्रेरणा लें!