श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव, जन्माष्टमी, देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, विशेषकर श्री कृष्ण से जुड़े धार्मिक स्थलों पर।
राजस्थान के सिरोही गांव में जन्माष्टमी का त्योहार 10 दिन तक 'कानूड़ा उत्सव' के रूप में मनाया जाता है, जहां मिट्टी से बनी बाल कृष्ण की मूर्ति की पूजा की जाती है।
गांव के लोग कानूड़ा की मूर्ति को घर लाकर, हर शाम गायों के बीच भजन गाते हैं और गरबा करते हैं। दसवें दिन मूर्ति का विसर्जन होता है।
कर्नाटक के उडुप्पी में स्थित श्री कृष्ण के मंदिर में भक्त 9 छिद्रों से भगवान के दर्शन करते हैं। यह दर्शन का अनूठा तरीका है।
उडुप्पी को 'दक्षिण मथुरा' के नाम से भी जाना जाता है, जहां जन्माष्टमी पर खास पूजा, कृष्ण लीलोत्सव और मोसारू कुडिके की रस्में होती हैं।
उदयपुर के पास नाथद्वार में श्रीनाथजी के मंदिर में जन्माष्टमी का विशेष उत्सव मनाया जाता है, जहां भगवान को 21 तोपों की सलामी दी जाती है।
नाथद्वार के इस मंदिर में श्री कृष्ण की 7 साल के बाल रूप की मूर्ति स्थापित है, जिसे देखने के लिए भक्तों का तांता लगता है।
जन्माष्टमी का यह उत्सव, विभिन्न क्षेत्रों में अपनी खासियत और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति का प्रतीक है।