Benefits of Stubble: राजधानी दिल्ली-एनसीआर में फिर से एक बार प्रदूषण बड़ी समस्या बन गई है। दिल्ली से लगे हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश राज्य कृषि करने वाले राज्यों में से एक है। यहां कृषि के बाद निकलने वाले पराली को किसान जला देते थे जिसकी वजह से प्रदूषण के स्तर को बढ़ना माना गया है। लेकिन हाल के वर्षों में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की कोशिशों और पराली को लेकर जागरूकता के चलते पराली को जलाने की घटनाएं कम ही देखी गई है। इसके साथ ही आज पराली से कई इनोवेशन हो रहे हैं जो काफी क्रिएटिव और यूजफुल साबित हो रहे हैं। दुनियाभर की बात करें तो जापान और चीन समेत दुनिया के 62 देशों के लिए ये फायदे का सौदा साबित हुआ है। इन देशों के पराली से फायदा लेने के तरीकों के बारे में जानने से पहले समझते हैं कि आखिर पराली किसे कहते हैं
पराली के बारे में
पराली(Stubble) धान की फसल के बाद निकलने वाली सूखी घास होती है। धान कटाई के दौरान किसान जड़ से ऊपर का कुछ हिस्सा छोड़ते हैं। जड़ समेत धान के छूटे हुए इसी हिस्से को पराली कहते हैं। किसान नई फसल के लिए खाली खेत तैयार करने के लिए पराली में आग लगाते हैं। इससे खेत जल्दी खाली तो होता है साथ ही इसमें किसान को खर्च भी नहीं करना पड़ता। लेकिन ये वायु प्रदूषण को बढ़ाता है।
पराली को जलाने से भयंकर प्रदूषण फैलता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, एक टन पराली को जलाने पर करीब 1,500 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड, तीन किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड निकलता है। इन गैसों के कारण लोगों को सबसे ज्यादा फेफड़ों, दिल और आंखों से जुड़ी बीमारियां होती है। इनसे साइनस ट्रिगर होना, अस्थमा का बढ़ना समेत कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं।
दुनियाभर में इनोवेटिव तरीके से हो रहा पराली का इस्तेमाल
भारत ही नहीं, चाइना, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, जापान, थाइलैंड और मलेशिया समेत दुनिया के दर्जनों देश चावल उगाते हैं जिससे पराली निकलती है। भारत और पाकिस्तान को छोड़कर बाकी किसी भी देश से इससे प्रदूषण की शिकायतें नहीं सुनने को मिलती हैं। दरअसल, दुनिया के 62 चावल उत्पादक देशों ने पराली के दूसरे उपयोगों पर ध्यान दिया है। चीन ने करीब 20 साल पहले पराली जलाने पर सख्त रुख अपनाया था। वहां पराली को खत्म करने के प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। चीन के कई हिस्सों में पराली से बिजली बनाई जा रही है। जापान में पराली को जानवरों के लिए चारे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
बायो फ्यूल से लेकर मशरूम की पैदावार में इस्तेमाल
पराली से कई देशों में खाद बनाया जाता है जिससे कृषि भूमि की उत्पादकता बढ़ाई जा रही है। भारत में भी अब पराली को पेट्रोल के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। बायो इथेनॉल बनाकर बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज जैसे तमाम वाहनों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। इंडोनेशिया, थाइलैंड, मलेशिया समेत कई देशों में सेहत के लिए ये फायदेमंद माना गया है। चेहरे पर रौनक लाने वाली मशरूम पराली पर ही उगाई जाती है। कई देशों में पराली की रीसाइक्लिंग भी हो रही है।
पराली से भारत ऐसे निपट रहा
भारत में पराली से बायो-एथेनॉल बनाने पर तेजी से काम हो रहा है। इसके अलावा अब प्लास्टिक से बनी स्ट्रॉ की जगह पराली की स्ट्रॉ बनाई जा रही है। कुछ कंपनियों ने पराली को रीसाइकिल कर फर्नीचर बनाने का काम शुरू किया है। साथ ही पराली को एंजाइम्स के जरिये खत्म करने का एक प्रयोग साल 2021 में हो चुका है। इसके काफी अच्चे नतीजे आए थे। इस प्रयोग में पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने हिस्सा लिया। इस प्रयोग के तहत पराली पर खास एंजाइम्स का छिड़काव किया गया जिससे पराली 20 से 25 दिन के भीतर खाद में बदल गए।