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Read Time: 4 minuteनॉवेल कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में कोहराम मचाया हुआ है। इससे दुनिया के सबसे ताकतवर देश भी नहीं बच पाए हैं। यहाँ तक जो देश health sector में सबसे उन्नत माने जाते थे, उन्होंने भी इस महामारी के सामने अपने घुटने टेक दिए हैं। लेकिन इस पूरे प्रसंग के दौरान अगर किसी देश ने वाकई में अपनी ताकत और क्षमता को पहचाना है तो वो है भारत। भारत में भी अमरीका, इटली और रूस की तरह ही जनवरी में पहले कोरोना के केस ने पाँव पसारा था।
जहाँ अमरीका जैसे ताक़तवर देश में कोरोना 18 लाख से ज़्यादा लोगों में फ़ैल चुका है, वहीं भारत में उसी समय अंतराल में यह संख्या 2 लाख के करीब है। जनसंख्या के लिहाज़ से भी कोरोना को कंट्रोल करना भारत के लिए कठिन है। इस संकट के शुरूआती दौर में देश के health sector में काफी कमियाँ थी। ना हमारे पास कोरोना की टेस्टिंग के लिए स्थायी लैब्स थे और ना ही PPE kits की उपलब्धता। लेकिन 4 महीने के भीतर ही, आज हमारे देश में 555 labs कोरोना की जांच में जुटें हुए हैं। यह भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के इतिहास में एक अनूठी उपलब्धि है।
इसी प्रकार, इससे पहले देश में PPE kits का कोई घरेलू उत्पादन नहीं किया जाता था और लगभग सभी kits का आयात किया जाता था। अब, हमारे पास 111 स्वदेशी निर्माता हैं। पीपीई उत्पादन क्षमता इतनी बढ़ गई है कि यह भारत में 7,000 करोड़ रुपये का उद्योग बन गया है, जो चीन के बाद सबसे बड़ा है।
भारत कोरोना के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र में विश्व गुरु बनने की तयारी कर रहा है। वह तेज़ी से Preventive Health Care measures पर काम कर रहा है। आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत योग, आयुर्वेद और सस्ती स्वास्थय सुविधाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत वैश्विक स्तर पर जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता रहा है और इसलिए, कई छोटे देशों में चिकित्सा आपूर्ति प्रदान करने के लिए अपने बढ़ते फार्मा उद्योग को आकर्षित कर सकता है। इसके पहले भी भारत ने देश से पोलियो का पूर्ण रूप से सफ़ाया कर पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण पेश किया था। वर्तमान में, भारत ने सारे विश्व को योग की शक्ति से अवगत कराया है। भारत के प्रयासों के बदौलत ही हर वर्ष 21 जून को दुनिया भर में विश्व योग दिवस मनाया जाता है।
इसके अतिरिक्त, भारत ने विश्व को दुनिया की सबसे पुरानी वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली "आयुर्वेद" का उपहार भी दिया है। आयुर्वेद एक प्राचीन स्वास्थ्य देखभाल परंपरा है जो कम से कम 5000 वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है। "आयुर्वेद" शब्द संस्कृत के शब्द आयुर (जीवन) और वेद (ज्ञान) से आया है। हजारों साल पहले वेदों में आयुर्वेद या आयुर्वेदिक चिकित्सा का दस्तावेजीकरण किया गया था। यह आने वाले वर्षों में विकसित हुआ है।
आयुर्वेदिक दवाओं से जहाँ एक ओर करोड़ो लोगों के स्वास्थ्य में अकल्पनीय सुधार देखने को मिला है, वहीं इसका सबसे अच्छा फायदा यह है की aloepathy की तरह आयुर्वेद का कोई दुष्परिणाम (side effects) नहीं है। और इसी वजह से इस चिकित्सा पद्धति में अब दूसरे देशों का भी विश्वास बढ़ रहा है। भारत में सुश्रुत जैसे चिकित्सक हुए जिन्होंने दुनिया को सर्जरी का सूक्ष्म ज्ञान दिया। उन्हें "Father of Surgery" के नाम से भी पहचाना जाता है। इस संपन्न संस्कृति और ज्ञान को अगर तकनीक के इस्तेमाल से बढ़ावा दिया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब भारत health sector में दुनिया का नेतृत्व करेगा।
भारत अब अपने देश में नयी technology के इस्तेमाल को प्राथमिकता दे रहा है। Telemedicine के इस्तेमाल से वह telecommunication technology का उपयोग करके स्वास्थ्य सुविधाओं को दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुंचाने के भी प्रयास में जुटा हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार टेलीमेडिसिन स्वास्थ्य सेवाओं की उन जगहों पर डिलीवरी को कहा गया है, जहां दूरी एक महत्वपूर्ण कारक है।
इसके अलावा "Make in India" के अंतर्गत अब भारत विदेशी वस्तुओं को छोड़कर स्वदेसी अपनाने के लिए भी अपने कदम आगे बढ़ा रहा है जिससे वह दूसरे देशों पर निर्भर ना रहकर आत्मनिर्भर बन पाए। इसी कड़ी में भारत के Health Sector को भी जोड़ा गया है। कोरोना काल में भी शून्य से शुरुआत कर आज भारत एक करोड़ से ज़्यादा PPE kits का उत्पादन कर रहा है और 1.2 करोड़ N-95 masks का उत्पादन कर चुका है। और उसी गति से वह हेल्थ सेक्टर में आईटी से संबंधित उपकरणों का विकास करने में भी लगा हुआ है।
कोरोना के बाद दुनिया के देशों के सामने असली चुनौती अपने देश को मंदी के हालातों से बचाने की होगी। इसके अलावा सभी देशों को अपने हेल्थ सेक्टर को विकसित करने की तरफ ज़ोर देना होगा। जहां चीन जैसे देशों पर से दुनिया का विश्वास कम होते जा रहा है, वहीं दूसरी ओर दुनिया के बड़े उद्योग भारत में अपना भविष्य तलाश रहे हैं जिसमें हेल्थ सेक्टर के भी उद्योग शामिल हैं। इस अवसर का इस्तेमाल करके भारत को इन कंपनियों के लिए ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना होगा। इसके साथ ही नयी तकनीकों का विकास करके स्वस्थ्य संम्बधी सेवाओं को जन-जन तक पहुँचाना भी एक अहम लक्ष्य होगा।
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