भारत की पवित्र भूमि पर बहुत से वीर योद्धाओं का जनम लिया है परन्तु यहाँ के वीरांगनाओं की कहानियां भी किसी से कम नहीं। गढ़ मंडला से लेकर महाकोशल तक राज करने वाली रानी दुर्गावती को जल, जंगल और पहाड़ों की रानी के रूप में भी जाना जाता था। इसी बात से परेशां मुग़ल राजा अकबर ने माध्यम भारत में अपनी पैठ बनाने के लिए उसके चुनौती दी की वो मुग़ल सल्तन को अपना ले। रानी दुर्गावती को चुनौती मंजूर थी परन्तु गुलामी नहीं। रानी युद्ध के लिए तैयार हो गई।
दरअसल, रानी दुर्गावती का जन्म बांदा ( UP ) में हुआ था। उनका विवाह दलपत शाह गोंड से हुआ जो मंडला के राजा संग्राम शाह के सबसे बड़े पुत्र थे। विवाह के कुछ समय पश्चात ही राजा की मृत्यु हो गई और ऐसे में रानी को राजगद्दी संभालनी पड़ी । रानी दुर्गावती गोंड राज्य की पहली रानी बनीं।
ऐसे में मुग़ल सम्राट अकबर ने राजा की मृत्यु के बाद मंडला पर कब्ज़ा करने का सोचा और रानी दुर्गावती को कमजोर समझकर अपना राज्य मुग़ल सल्तन को सौंपने को कहा। ऐसे में रानी दुर्गावती ने इंकार कर, जंग लड़ना पसंद किया।
इतने में अकबर ने आसिफ खान को गोंड राज्य पर आक्रमण करने को कहा। रानी दुर्गावती की सेना छोटी थी। परन्तु उनके इरादे बड़े मज़बूत थे। रानी ने अपनी सेना को जंगलों में छुपा दिया था। जैसे ही युद्ध शुरू हुआ अकबर रानी दुर्गावती की रणनीति देख कर हैरान रह गया।
एक पर्वत पर जब आसिफ खान और रानी दुर्गावती की सेना का सामना हुआ तो जंग छिड़ गई । खान की सेना के पास काफ़ी हथियार थे जिस से रानी के सैनिक घायल होने लगे। इतने में जंगल में छिपी रानी की सेना ने बाणों की वर्षा कर दी। अकबर की सेना तीन बार हमला करने पर भी नकमयाब रही और उनको हार का सामना करना पड़ा।
एक साल के अंतर्गत आसिफ खान ने धोके से सिंगारगढ़ को घेर लिया और आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। ऐसे में एक बार फिर से युद्ध शुरू हो गया। कुछ घंटों बीत गए परन्तु रानी और उनकी सेना बिना रुके दुश्मनो से लड़ते ही जा रही थी। इतने में एक तीर आके रानी दुर्गावती के आँख में लगा पर फिर भी वे युद्ध भूमि छोड़ के नहीं गए।
एक सैनिक ने रानी से आके रणभूमि से दूर जाकर आराम करने को कहा। रानी दुर्गावती ने इस्पे कहा कि युद्ध में या तो विजय प्राप्त हो या तो मृत्यु, इसके अलावा कुछ नहीं।
जब रानी असहाय होने लगी तोह उन्होंने एक सैनिक को पास बुलाया और कहा अब तलवार घुमाना असंभव है। शत्रुओं के हाथ शरीर का एक भी अंग नहीं लगने देना ही उनकी अंतिम इच्छा थी। रानी ने सैनिक को स्वयं को मारने को कहा परन्तु सैनिक में इतनी हिम्मत नहीं थी। ऐसे में रानी ने स्वयं ही अपनी छाती में तलवार घुसा ली और युद्धभूमि में अंतिम स्वांस तक लड़कर हमेशा के लिए अमर हो गई।
रानी दुर्गावती को मौत मंजूर थी पर गुलामी नहीं और इसीलिए उन्होंने कहा के आत्मसम्मान के बिना जीने से बेहतर है कि गरिमा के साथ मर जाएं।