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मछली पालन की ये तकनीक काफी फायदेमंद, कम जगह में किसान कर सकते हैं अच्छा व्यवसाय!

by Rishita Diwan

Date & Time: Sep 17, 2023 12:00 PM

Read Time: 2 minute

बायोफ्लॉक तकनीक मछली पालन की नई तकनीक

छोटे स्तर पर मछली पालन का बिजनेस

किसान बढ़ा सकते हैं आमदनी

खेती किसानी आजकल एक व्यवसाय की तरह भी देखा जा रहा है। किसान कृषि के साथ दूसरे तरीकों को अपनाकर भी आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। इनमें से एक है बायोफ्लॉक तकनीक से कम जगह. कम पैसा और कम मेहनत में ही अच्छा मुनाफा किसान कमा सकते हैं। मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc Fish Farming), से कम जगह में छोटा और गोल टैंक बनाकर मछली पालन (Fish Farming in Tank) किया जाता है।

बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया (Biofloc Bacteria)  है, जो मछलियों के वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है। इस इस प्रोटीन के इस्तेमाल भी मछलियां ही करती हैं, जिससे संसाधनों की काफी हद तक बचत होती है। किसान चाहे तो बायोफ्लॉक मछली पालन के लिये अपनी सहूलियत के हिसाब से छोटे या बड़े टैंक बनवा कर उसमें ये तकनीक अपना सकते हैं।

बायोफ्लॉक तकनीक के बारे में..

बायोफ्लॉक तकनीक में, बायोफ्लॉक  नाम के एक बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में सबसे पहले मछलियों को सीमेंट या मोटे पॉलिथीन से बने टैंक में डालते हैं। फिर मछलियों को समान्यतः जो खाना दिया जाता है वही फीड करवाया जाता है। मछलियां जितना खाना खाती हैं, उसका 75 प्रतिशत मल के रूप में शरीर से बाहर निकालती हैं। फिर बायोफ्लॉक बैक्टीरिया इस वेस्ट को प्रोटीन में बदलने का काम करता है, जिसे मछलियां खा जाती हैं। जिससे उनका विकास बहुत तेजी से हो जाता है।

अगर कोई मछली पालक 10 हजार लीटर क्षमता की एक टैंक तैयार करवाता है, तो बनवाने की लागत 32 से 35 हजार रूपये तक आती है। इसका इस्तेमाल लगभग 5 सालों तक किया जा सकता है। अगर कोई मछली पालक 25-30 हजार की लागत लगाकर इसमें मछली पालन करता है, तो उसे लगभग 6 महीने में 3 से 4 क्विंटल मछलियां ली जा सकती है।

बायोफ्लॉक तकनीक से लाभ

•    काम लागत, सीमित जगह और ज्यादा प्रोडक्शन।
•    चार महीने में सिर्फ एक ही बार पानी भरना होता है।
•    गंदगी जमा होने पर सिर्फ 10% पानी निकालकर इसे साफ कर सकते हैं।
•    अनुउपयोगी जगह एवं कम पानी का इस्तेमाल
•    मजदूरों की लागत कम होती है।

बायोफ्लॉक तकनीक मछली पालन की नई तकनीक के रूप में सामने आयी है। इस तकनीक से पंगेसियस, तिलापिया, देशी मांगुर, सिंघी, कोई कार्प, पाब्दा और कॉमन कार्प जैसी प्रजातियों का भी आसानी से पालन कर सकते हैं।

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